udaipur. गाँवों की तस्वीर उभारने के लिए यूँ तो कई स्वयंसेवी संगठन आगे आये हैं और काम भी करते हैं लेकिन बड़े-बड़े कॉर्पोरेट ग्रुप्स आगे आकर मन लगाकर तन्मयता से काम करे. यही नहीं बल्कि उन जन हित के कामों के लिए अलग से विभाग ही बना दे जो उन कामों की बराबर देखभाल करता रहे, ऐसा सिर्फ वेदांता में ही दिखा.
विश्व की सबसे बड़ी जस्ता उत्पादक कंपनी होने के बावजूद वेदान्ता के प्रबंध निदेशक अनिल अग्रवाल गाँव की समस्याओं से खुद को दूर नहीं पाते. समय की कमी के कारण जहाँ वे खुद नहीं जा पाते, लेकिन गाँवों की खुशहाली के लिए योजना बनाई और उसे अमली जामा पहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी हिन्दुस्तान जिन्क के प्रमुख प्रचालन अधिकारी (C.O.O.) अखिलेश जोशी ने. जोशी ना सिर्फ इन सामाजिक सरोकारों के कामों को देखते हैं बल्कि समय-समय पर दिशा-निर्देश भी देते है.
सबसे पहले बच्चे
गांवों में बच्चे आज भी स्कूल नहीं जा पाते। इनका बीड़ा उठाया सीएसआर टीम ने। टीम के अनुभवी कार्यकर्ताओं ने सबसे पहले गांवों में पढ़े-लिखे बेरोजगार युवकों को अपने से जोड़ा। फिर उन्हें गांव के लोगों से उनके छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल भेजने पर जोर दिया। जिंक की ओर से इन बच्चों के लिए नाश्ते में पोषाहार के रूप में नित्य प्रतिदिन पोहा भी भिजवाया जाने लगा. बच्चे स्वतः आने लगे. दो-तीन बच्चे तो यहां ऐसे भी थे जिन्होंने एक वर्ष उत्तीर्ण कर लिया और अगली क्लास में जाना चाहिए लेकिन वे बार-बार अपनी क्लास छोडक़र यहीं पुरानी क्लास में आना पसंद करते हैं.
किसान की पूंजी पशु
सारा काम अकेले के बल पर नहीं किया जा सकता, यही सोचकर जिन्क ने बायफ के साथ हाथ मिलाया और किसानों के पशुओं के लिए कृत्रिम गर्भाधान कराया. बायफ के डॉ. परतानी बताते हैं कि स्थानीय ग्रामीणों को समझाना बहुत मुश्किल था. उन्होंने किसानों को समझाया व सारी प्रक्रिया बिलकुल नि:शुल्क होने और आगामी फायदे बताए. तब कहीं जाकर कुछ किसान राजी हुए. जहां कृत्रिम गर्भाधान के बाद अगले गर्भधारण के लिए कुछ समय चाहिए होता है. गाय के सफल गर्भधारण के बाद किसान फिर इसके लिए तैयार हो जाते हैं. जंगल में शौच जाने वाले किसानों को घर में शौचालय निर्माण करने के लिए समझाना मुश्किल ही नहीं लगभग नामुमकिन था। कोई ग्रामीण इसके लिए तैयार ही नहीं होता था। गंदगी घर में कैसे एकत्र करें। जब उन्हें पूरी प्रक्रिया समझाई गई तो कुछ राजी हुए, कुछ नहीं। कुछ बनाकर तैयार किए गए और फिर उन्हें दिखाया गया तो फिर वे धीरे-धीरे अब इस ओर जाग्रत होने लगे। एक शौचालय बनाने में करीब-करीब 5 हजार रुपए तक का खर्च आता है।
शिक्षा सम्बल अभियान
कंपनी के कर्मचारी उन स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने जाते हैं जहां शिक्षकों की कमी है और बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता है. अमूमन स्कूलों में शिक्षकों की कमी रहती है. कहीं-कहीं तो अध्यापक होते ही नहीं हैं क्योंकि अध्यापकों के पास स्काउट-गाइड, खेल के लिए टीम बाहर ले जाना आदि काम भी होते हैं. इस पर कर्मचारी अपने-अपने समय के अनुसार स्कूल जाते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं. उड़ीसा मूल के यहां कार्यरत कर्मचारी समरेन्द्र पात्रो ने बताया कि बच्चों का पढ़ाई का नुकसान बच जाता है, साथ ही हमारा भी रिवीजन हो जाता है.
शुद्ध पानी की व्यवस्था
कंपनी की ओर से तीन लाख रुपए की लागत से आर.ओ. प्लांट लगवाए गए हैं. वहां से मिलने वाला पानी 10 पैसे प्रति लीटर की दर पर दिया जाता है. पैसा इसलिए ताकि उसकी देखभाल करने के लिए रखे हुए आदमी की तनख्वाह निकल जाए और अनावश्यक किसी पर भार भी नहीं आए। प्लांट के लिए एक प्रीपेड कार्ड तैयार करवाया गया है. कार्ड पंच करवाओ और 10 लीटर पानी ले जाओ। कार्ड खत्म हो और पैसे देकर नया कार्ड ले लो. कंपनी का मानना है कि आप भले ही पैसा खर्च कर दें लेकिन जब तक गांव की टीम, पंचायत, ग्रामीण आदि समर्पित भाव से आपके साथ नहीं होंगे, टीम मजबूत नहीं होगी तब तक आप कुछ नहीं कर सकते.
खेल स्टेडियम
आमजनों के लिए दरीबा में ही स्टेडियम बनवाया जा रहा है। यह इतना बड़ा है कि क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी आदि सभी के मापदण्डों पर खरा उतरता है। अभी इसका कार्य शुरू हुआ ही है लेकिन बहुत जल्द इसे पूरा कर लिए जाने की संभावना है। इसके लिए जमीन राज्य सरकार ने आवंटित की है और निर्माण कंपनी की ओर से कराया जा रहा है।
किसानों को लाभ
किसानों को आधुनिक खेती के तरीकों से जानकारी कराने के लिए उन्हें बाहर कार्यशालाओं में भी भेजा जाता है ताकि वे ये तरीके सीख कर अपने खेतों में इन्हें अप्लाई कर सकें और उसका भरपूर लाभ ले सकें। गांव के किसान ने बताया कि पहले वे अपने खेत में मक्का आदि स्थानीय फसल बोकर ही पानी के भरोसे रहते थे। कंपनी के सहयोग से उन्होंने बोरवेल करवा लिया और बाहर कार्यशाला हुई जहां से सीखकर आए और खेत में दो पैदावार लगाई। दोनों पैदावार मक्का से कई गुना अधिक उपज दे रही है। वे इससे बहुत खुश हैं।
महिलाएं हुई आत्म निर्भर
महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह भी खोले गए हैं। इस दिशा में इतना बढिय़ा काम किया जा रहा है कि महिलाओं को अपने घर के कामकाज से फ्री होकर सिलाई, कढ़ाई-बुनाई सिखाना, आर्ट वर्क आदि काम सीखने में आनंद भी आ रहा है। यही नहीं, इसके बाद इनके सिले हुए वस्त्र आदि बाहर बिकने के लिए भी जाने लगे हैं। स्वयंसेवी संगठन इनके बनाए वस्त्र हाथों-हाथ खरीद लेते हैं और आगे के लिए ऑर्डर भी दे देते हैं।
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