चारों तरफ दीपावली की जबर्दस्त चकाचौंध भरी-बिखरी पड़ी है। आतिशबाजी के धूम धड़ाकों और भयंकर शोर भरे माहौल के बीच लक्ष्मी रिझाने की हरचंद कोशिशों में जुटे हैं करोड़ों-अरबों लोग।
इनमें से हरेक को आशा और विश्वास है कि लक्ष्मी की कृपा उन्हीं पर बरसने वाली है। यह कितने आश्चर्य की बात है कि लक्ष्मी मैया की अपने घर-आँगन, दुकान और हृदय तक पहुँच के तमाम रास्तों को बंद करने के बाद हम इस भ्रम में बैठे हैं कि लक्ष्मी दाँये-बाँये, अगल-बगल कहीं भी झाँके नहीं और सीधे उनके यहाँ ही आ धमके ताकि जो कुछ वह बाँटने निकली है वह पूरा का पूरा उन्हें ही मिल जाए, कोई दूसरा बीच रास्ते से लक्ष्मी को भरमा कर हथिया न ले। लक्ष्मी की हम तक पहुँच से कहीं ज्यादा चिंता हमें इस बात की है कि लक्ष्मी कहीं रास्ता भटक कर पास या और कहीं का रुख न कर ले।
आँखों को चुँधिया देने वाली रंग-बिरंगी रोशनी, कानों के परदों तक को फोड़ देने वाले तीव्र शोरगुल और आसमान गुंजा देने वाले पटाखों व आतिशबाजी के रंगीन नज़ारों, धमाकों और भयंकर से भयंकर घातक प्रदूषण की तीक्ष्ण गंध के बीच हम लक्ष्मी पाने को उतावले हैं।
हमारी धर्म प्राण संस्कृति, भारतीय सभ्यता और देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के परंपरागत और शास्त्रविहित कर्मों, सदाचार और धर्ममय जीवनयापन तक को भुल-भुलाकर आज हम लक्ष्मी आराधना के टोनों-टोटकों और हथकण्डों में जुटे हैं और थोड़ी-बहुत अलक्ष्मी को प्राप्त कर लेकर इतने दंभी, अहंकारी और व्यभिचारी हो गए हैं कि हमें अपने और अपने परिवार के सिवा पूरे दुनिया जहान में और कोई दिखता ही नहीं।
लक्ष्मी को पाने के लिए आज हम जो भी जतन कर रहे हैं उनके बारे में स्पष्ट और सीधी तरह समझ लेना चाहिए कि इन नाटकों से हम लक्ष्मी मैया को सौ जन्मों में भी नहीं रिझा सकते हैं।
आज हम लक्ष्मी मैया को खुश कर लक्ष्मी पाने के जो भी जतन कर रहे हैं वस्तुतः वे अलक्ष्मी की आराधना के साधन हैं और इनसे लक्ष्मी के भ्रम में हम अलक्ष्मी को प्रसन्न करने में अपनी शक्ति, सामर्थ्य और समय गँवा रहे हैं।
आज पूरा विश्व अलक्ष्मी की माया से विमोहित है और अलक्ष्मी पाने के लिए दिन-रात एक कर रहे करोड़ों-अरबों लोगों की भीड़ में रोजाना इजाफा होता जा रहा है। आज जिसे हम लक्ष्मी कह रहे हैं उसमें शुमार है जमीन-जायदाद, अनाप-शनाप सम्पत्ति, बेशकीमती वाहन और दबावों से अर्जित की गई लोकप्रियता।
लेकिन जिस अनुपात में हम साधन सम्पन्न और लोकप्रिय होते जा रहे हैं उसी अनुपात में हमारी शांति, आनंद और मौलिक शुचिता लगातार खत्म होती जा रही है और सब कुछ पाने के बावजूद हम बीमारियों और तनावों को अपना संगी-साथी बनाते जा रहे हैं। इतने कि हमारा दिन का चैन और रातों की नींद तक हराम हो गई है।
अकूत धन-दौलत और संसाधनों के होते हुए भी हमारी स्थिति यह हो गई है कि हम अपने मन का कुछ नहीं कर पा रहे हैं और हमें दूसरों के भरोसे निर्भर रहना पड़ रहा है चाहे वे हमारी सुरक्षा में लगे पेशेवर सुरक्षा गार्ड हों, अपने आस-पास भटकने और जयगान करने वाले या अपनी चरण चंपी करने वाले चापलुसों की भारी फौज हो या फिर अलग-अलग बीमारियों के लिए दक्षता पाए विशेषज्ञ डाक्टर हों। या फिर वे लोग हों जिन्हें हम अपना गॉड फादर या गॉड मदर मानते हों।
लक्ष्मी को पाने के लिए वे सभी बातें जरूरी हैं जिन्हें हमारे शास्त्रों में स्वीकारा गया है और इनका परिपालन करने से ही लक्ष्मी को प्राप्त करने में हम सफलता अर्जित कर सकते हैं, इन शास्त्रसम्मत हिदायतों की उपेक्षा करके हम पूरी जिन्दगी गुजार कर भी लक्ष्मी को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं।
हाँ इतना भ्रम जरूर रख सकते हैं कि लक्ष्मी मैया को प्रसन्न रखने की खातिर वो हर साल बहुत कुछ करते रहे हैं और करते रहेंगे। यह भ्रम ही है जो उन्हें बरकत भी देता है और उल्टे-सीधे तमाम अवैध कामों को करने का आत्मविश्वास भी, जिसके सहारे वे वो सब कुछ कर गुजर रहे हैं जो लक्ष्मी को कभी पसंद नहीं, उल्टे लक्ष्मी मैया इनसे नाराज ही रहती है। यही वजह है कि हम जो काम कर रहे हैं उनसे अलक्ष्मी जरूर आ रही है, पर हम भ्रम बनाये रखे हुए हैं कि लक्ष्मी रीझ रही है।
पूरा संसार रंग-बिरंगी चकाचौंध से भरा पड़ा है और उत्सवी उल्लास के यौवन पर पहुंच चुकने के बाद भी हम भीतर से खिन्न और खाली होने का अनुभव कर रहे हैं और सब कुछ पास होने के बावजूद भीतरी आनंद से वंचित हैं। हमारी आत्मा में प्रसन्नता के भाव नहीं हैं और तमाम उपायों के बावजूद हमें वह उल्लास प्राप्त नहीं है जो होना चाहिए। इस विलोमानुपाती हालातों को गंभीरता से सोचना होगा।
आनंद कहीं बाहर नहीं होता बल्कि यह मन की स्थितियों पर निर्भर है। बाहर की बजाय अपना रुख थोड़ा सा अन्दर की ओर कर लिया जाए तो धीरे-धीरे हमारे भीतर आनंद का महास्रोत अपने तटबंध तोड़ने आरंभ कर देता है और तब हमें अपने भीतर से ही इतनी अपार शांति और आत्म आनंद का अनुभव होता है जो बाहरी शांति और आनंद से हजार गुना तो होती ही है, शाश्वत भी है ।
एक बार भीतर के दरिये में नहा लेने के बाद जीवन में हर क्षण मस्ती छायी रहती है और तब एक स्थिति ऐसी आती है कि हम बाहरी चकाचौंध को भुलकर अपने भीतर ही सब कुछ प्राप्त करने में खो जाते हैं और हमें जो अभीप्सित होता है वह भीतर से ही स्वतः प्राप्त होता रहता है।
तब हमें पता चलता है कि जीवन का असली आनंद तो हमारे ही भीतर है। इसे पाने का सतत अभ्यास करें और जीवन में आनंद लाएँ।
सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
– डॉ. दीपक आचार्य