समाज जुड़ाव से भूजल प्रबंधन व् प्रकृति संरक्षण विषयक संगोष्ठी
उदयपुर। उदयपुर सहित सम्पूर्ण राजस्थान एवं देश का बड़ा हिस्सा कृषि, पेयजल, व औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति भूजल से करता है। इसमें भूजल का अतिदोहन व् अति प्रदूषण हो रहा है, जबकि भूजल से ही सम्पूर्ण पर्यावरण व जैव विविधता पोषित होती है।
खराब हो चुके इन क्षीण भूजल भंडारों को सामुदायिक सहभागिता से ही बचाया जा सकता है। इसका अनुकरणीय उदहारण उदयपुर के ग्रामीण क्षेत्रों से प्रारम्भ हुआ है, जहां वैज्ञानिकों की प्रेरणा से किसान परिवारों ने मिलकर ग्राम भूजल सहकारिता समिति का गठन किया है, जो भूजल मापन, पुनर्भरण, प्रबंधन का सामुदायिक वैज्ञानिकता का एक नया मॉडल है।
यह जानकारी वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के प्रमुख जल वैज्ञानिक डॉ. बसंत माहेश्वरी ने विद्या भवन पॉलीटेक्निक सभागार में ” समाज जुड़ाव से भूजल प्रबंधन व् प्रकृति संरक्षण “विषयक सेमिनार में दी।
सेमिनार का आयोजन विद्या भवन, महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय सहित भारत व् ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न संगठनो द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
डॉ. माहेश्वरी ने बताया कि राजस्थान के उदयपुर तथा गुजरात के अरावली जिले के कुल दस गांवों में, प्रति गांव पांच किसानों को भूजल जानकर के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। इन्हें बरसात मापन, तालाब जल स्तर मापन, कुआं जल स्तर मापन, भूजल गुणवत्ता मापन के सरल यंत्र दिए गए हैं। किसान मीटर लगा कर उनके द्वारा खींचे गए भूजल की मात्रा को भी नाप रहे है। एक एप मायवेल पर एसएमएस अथवा स्मार्ट फोन से भूजल जानकर इन आंकड़ों को भेजते हैं तथा वैज्ञानिक उन्हें भूजल पुनर्भरण तथा सतही व भूजल उपलब्धता का विश्लेषण भेजते हैं व उचित प्रकार की फसल बोने की सलाह देते हैं। अब हिंता गांव इलाके में भूजल सहकारिता समिति का गठन हुआ है।
कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व अनुसन्धान निदेशक डॉ. आरसी पुरोहित ने कहा कि भूजल जानकारों की मदद से मुख्यमंत्री जलस्वावलंबन योजना की व्यापक सफलता को सुनिश्चित किया जा सकता है। पुरोहित ने कहा कि फॉर वाटर अवधारणा जिसमें मृदा जल, बहते वर्षाजल, सतही जल तथा भूजल, चारों प्रकार के जल के समग्र संरक्षण पर जोर है , उसे गांवों के ऐसे भूजल जानकर वास्तविकता में परिणित कर सकने में सक्षम है।
पॉलीटेक्निक के प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने उदयपुर पहाड़ी व् कठोर चट्टानीय क्षेत्र है जंहा भूजल नहीं बचा तो यहां की झीलें भी नहीं बचेगी। अतः उदयपुर वासियों को भूजल संरक्षण पर सक्रिय होना होगा तथा नागरिक स्तर पर गहरे व बड़े नलकूपों पर रोक अपनानी होगी। मेहता ने कहा कि यह विरोधाभासी एवं आश्चर्य जनक है कि शहर व समीपवर्ती क्षेत्रों में बहुमंजिला आवासीय व् व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स बनाने की मंजूरी होती है लेकिन इन्हे पीएचइडी पानी का कनेक्शन नहीं देती। ये इमारतें मजबूरन भूजल का दोहन कर रही है। ऐसे में जहां इन्हे सरकारी स्तर पर जल आपूर्ति देनी चाहिये वहीं इनके नलकूपों पर मीटर लगाना चाहिये ताकि इनके द्वारा खींचे जा रहे भूजल का मापन होकर लागत वसूली हो, इन्हे रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित करना पड़े तथा अंधाधुंध दोहन पर नियंत्रण स्थापित हो।
झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि भोजन कि एक समय की थाली के अन्न को उपजाने में दो हजार लीटर पानी की खपत होती है। खाद्यान की बर्बादी रोक कर तथा जूठा नहीं छोड़ने की आदत अपनाकर हम भूजल स्त्रोतों को क्षीण होने से बचा सकते हैं। सेमिनार में भूजल विभाग के पूर्व अधीक्षण अभियंता पीसी सामर, एफ्प्रो के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक पल्लव दत्ता तथा वर्षा जल संरक्षक डॉ पीसी जैन ने भी सम्बोधित किया।