रिसर्च मेथोलॉजी (होम्योपैथी) पर राष्ट्रीय कार्यशाला
उदयपुर। होम्योपैथी सस्ती इलाज की पद्धति है जिसमें गरीब से लेकर मध्य वर्ग के लोग इलाज करवाते है। एलोपैथी में जहां 10 रूपये में दवा मिलती है वहीं होम्योपैथी में दो रूपयों में दवा मिल जाती है। अगर राज्य स्तर पर होम्योपेथी चिकित्सा पद्धति को प्रोत्साहन मिले तो होम्योपैथी चिकित्सकों की संख्या बढ़ सकती है।
ये विचार शुक्रवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक होम्योपैथी चिकित्सा महाविद्यालय की ओर से रिसर्च मेथोलॉजी पर राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे दिन सेन्ट्रल कौंसिल ऑफ होम्योपैथी के सदस्य प्रो. एलके नंदा ने देश भर से आये प्रतिभागियों केा सम्बोधित करते हुए बतौर मुख्य वक्ता कही। उन्होंने कहा कि होम्योपैथी के क्षेत्र में और अधिक रिसर्च की आवश्यकता है। क्योकि बिना रिसर्च के उसका विकास रूक जाता है। प्रो. नंदा ने कहा कि होम्योपेथी के द्वारा वंशनुसार होने वाली डाइबिटिज बिमारी को पूर्व में ही होम्योपेथी दवा के द्वारा रोका जा सकता है। इसके लिए महिलाओं में होने वाली विभिन्न बिमारिया, सफेद दांग, एवं अधिक उम्र में होने वाले घुटने के दर्द से निजात मिल सकती है। सी.सी.एच. के सदस्य डॉ. एस.एम. सिंह ने कहा कि होम्योपेथी मरीज को ठीक करने की कोशिश करते है न कि मर्ज, होम्योपेथी यह मानकर चहता है कि वर्तमान में जो नई टेकनीक का प्रचलन चल रहा है। विश्व में 7 अरब से ज्यादा की जनता है जो कभी एक दूसरे से कभी नही मिलती। इससे भी विचित्र बात है कि जो व्यक्ति जैसा बाहर से दिखता है भीतर से वैसा नहीं है उसके अंदर एक मन है, विश्वास है। इसलिए चर्म रोग देखकर जब हम कोई निर्णय लेते है वो गलत है। इसलिए होम्योपेथी में बिमारी को न ठीक करके बिमार व्यक्ति को ठीक करते है। विशिष्टइ अतिथि डॉ. ईआर राजेन्द्रन ने होम्योपैथी की दवाईयां नैनो टेकनीक पर काम करती है जो बहुत कम मात्र में देने पर उपचार में कारगर सिद्ध होती है। संचालन डॉ. बबीता रशीद ने किया जबकि धन्यवाद प्राचार्य डॉ. अमिया गोस्वामी ने दिया। डॉ. अनिल ध्रुव, डॉ. राजन सूद, डॉ. लिलि जैन, डॉ. नवीन विश्नोई, डॉ. अजितारानी ने भी विचार व्यक्त किए। प्राचार्य डॉ. अमिया गोस्वामी ने बताया कि विभिन्न समानान्तर सत्रों में रिसर्च के बेसिक, रिसर्च प्रोसेस, डाटा एनालिसिस के प्रोसेस तथा इंटरनेशनल लेवल पर रिसर्च को प्रजेंट करने के तरीके बताए।