देश में बचे हुए सबसे छोटे जुड़वा बच्चों में से एक
उदयपुर। राजस्थान स्थित जीवन्ता चिल्ड्रन हॉस्पिटल ने पुनः एक बार इतिहास रचते हुए मात्र 26 हप्तों में जन्मे जुड़वा बच्चों को नया जीवनदान दिया है जो देश भर में बचे हुए सबसे छोटे जुड़वा बच्चों में से एक है। इनका वजन था मात्र 475 ग्राम व 617 ग्राम था। 126 दिनों के जीवन व मौत के बीच चले लम्बे संघर्ष के बाद आखिरकार यह जुड़वाँ बच्चे वर्तमान में 1.7 किग्रा व 1.95 किग्रा के हैं।
हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. सुनील जांगिड़ ने बताया कि मोन्द्रन, जालोर निवासी शोभा कुंवर और गणपतसिंह दम्पती को शादी के 27 साल बाद जुड़वाँ बच्चे होने का सौभाग्य मिला लेकिन 26 सप्ताह यानि 6 महीने के गर्भावस्था काल में ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। गर्भाशय का पानी लगभग खत्म हो गया था, इसलिए आपातकालीन सिजेरियन ऑपरेशन से जुड़वाँ बच्चों का जन्म 20 जनवरी 2018 को कराया गया। शिशु खुद श्वांस नहीं ले पा रहे थे। उनका शरीर नीला पड़ता जा रहा था। जीवन्ता चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉ सुनील जांगिड़, डॉ निखिलेश नैन, डॉ कपिल श्रीमाली एवं उनकी टीम ने डिलीवरी के तुरंत पश्चात नवजात शिशुओं के फेफड़ों में नली डालकर पहली श्वांस दी एवं नवजात शिशु इकाई एनआईसीयू में अति गंभीर अवस्था में वेंटीलेटर पर भर्ती किया। शादी के 27 वर्ष बाद मिले दोनों बच्चे दम्पती की आखरी उम्मीद थी और वे हर हालत में इन्हें बचाना चाहते थे। . उनको डॉ सुनील जांगिड़ की टीम जीवन्ता पर पूरा भरोसा था, जो पहले भी 400 ग्राम वजनी प्रीमेच्योटर शिशु को जीवनदान दे चुके हैं।
नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉ सुनील जांगिड़ ने बताया कि फेफड़ों के विकास के लिए फेफड़ों में दवाई डाली गई। प्रारंभिक दिनों में शिशुओं की नाजुक त्वचा से शरीर के पानी का वाष्पीकरण होने के वजह से उनका वजन और कम हो गया था। पेट की आंतें अपरिपक्व एवं कमजोर होने के कारण दूध का पाचन संभव नहीं था। ऐसे में शिशु के पोषण के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व ग्लूकोज़, प्रोटीन्स एव वसा उसे नसों के द्वारा दिए गए। 70 दिन बाद शिशु स्वयं श्वास लेने में समर्थ हुए। शिशुओं की 126 दिनों तक आई सी यु में देखभाल की गई। शिशुओं के दिल, मस्तिष्क, आँखों की नियमित रूप से चेक अप किया गया। आज 4 महीने बाद उनका वजन 1700 ग्राम और 1975 ग्राम हैं, स्वस्थ हैं एवं घर जा रहे है।