राजस्थान विद्यापीठ में व्याख्यानमाला
उदयपुर. पंडित जनार्दनराय नागर ने मेवाड़ क्षेत्र में जितना समर्थन हिंदी को किया, उतना ही झुकाव राजस्थानी भाषा पर भी रहा। एक तरफ जहां महात्मा गांधी स्वतंत्रता की अलख जगा रहे थे, वहीं पं. नागर मेवाड़ के सुदूर आदिवासी अंचल में शिक्षा की ज्योत जलाने में व्यस्त रहे।
उनके लेखन कला, शैली और साहित्यों में रुचि और समर्पण के आज भी उन्हें प्रासंगिक बनाते हैं। यह कहना है जोधपुर विश्वविद्यालय के पूर्व राजस्थानी विभाग के अध्यक्ष प्रो. कल्याणसिंह शेखावत का। अवसर था, जन्नू भाई जन्म शताब्दी वर्ष के दौरान शनिवार को राजस्थान विद्यापीठ में मनाई गई जन्म जयंती का। प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में हुए इस आयोजन में राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष एवं शिक्षाविद् डॉ. हेतू भारद्वाज ने बताया कि शिक्षण व्यवस्थाओं को लेकर जन्नू भाई ने जो कल्पनाएं आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व की थी, उसे वर्तमान सरकार अब मूर्त रूप दे रही है। इससे उनकी दूरगामी सोच के परिणाम मिलते हैं। साथ ही जन्नू भाई ने ऐसी संस्था बनाई जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता के अनुरुप कार्य करें एवं हमारी माटी के अनुरुप श्क्षिा दें। उन्होंने कहा कि समाज में ज्ञान और गरीबी महत्वपूर्ण है। गरीबी को भौतिक संसाधनों से दूर किया जा सकता है, लेकिन शिक्षा के द्वारा ही अज्ञानता को दूर किया जा सकता है। इससे पूर्व कार्यक्रम के आरंभ में पंडित नागर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। आरंभ सरस्वती वंदना एवं कुल गीत के साथ हुआ।
योजनाओं का क्रियान्वयन कर चुकाएं ऋण : डॉ. शेखावत ने कहा कि जन्नू भाई ने जो योजनाएं बनाई थी, उसके क्रियान्वयन को लेकर कार्यकर्ताओं को मुस्तैदी अपनानी चाहिए। तभी गुरु शिष्य परंपरा के तहत हम जन्नू भाई का ऋण अदा कर सकेंगे। जन्नू भाई को ऐसे ही कुल पुत्रों से आस थी कि जो संस्थान और समाज हित में रहते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाए।
मूल्य बोध के लिए हुई स्थापना : कुलाधिपति प्रो. बीएस गर्ग ने कहा कि स्व. नागर ने साक्षरता, बेहतर शिक्षा तथा मूल्य बोध के लिए ही राजस्थान विद्यापीठ की स्थापना की। वे शिक्षा, स्वतंत्रता को लोकतंत्र के बेहर जरुरी मानते थे। उन्होंने बताया कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को साक्षर एवं प्रबुद्ध बनाते हुए जीविकोपार्जन के लिए तैयार करना है, लेकिन वास्तविक उद्देश्य मनुष्य के सभी पहलुओं से व्यापक बनाना और विकसित करना था।
सामूहिक हित की भावना थी : कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने बताया कि जन्नुभाई अपने आप में किसी पुरस्कार से कम नहीं थे। उन्होंने संस्था का आरंभ रात्रिकालीन साक्षरता केंद्र के रूप में किया। उन्होंने शोषित, पीडि़त, खेतिहर, मजदूर एवं निम्न वर्ग के लोगों के लिए ग्रामीण अंचलों में शिक्षा का प्रचार प्रसार किया। इसके लिए उन्होंने जन भारती केंद्रों की स्थापना भी की।
साहित्य अकादमी भी करें आयोजन : व्याख्यानमाला में प्रो. शेखावत ने कहा कि भारत सरकार द्वारा भारत विभूषण तथा राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान रत्न पुरस्कार की शुरुआत की गई है। जिसकी क्रियान्वित सुनिश्चित की जानी चाहिए। साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष पंडि़त नागर के लिए राजस्थान साहित्य अकादमी को चाहिए कि वे इस जन्म शताब्दी वर्ष को समारोहपूर्वक मनाएं। स्वागत भाषण रजिस्ट्रार डॉ. प्रकाश शर्मा ने किया।