सौभाग्य की वृद्घि होती है तीर्थ यात्रा करने से : प्रसन्न सागर
Udaipur. सर्वऋतु विलास स्थित अन्तर्मना सभागार में अन्तर्मना मुनि प्रसन्न सागर की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से सप्त दिवसीय अन्तर्मना रजत स्वर्णिम शाश्वत तीर्थ यात्रा उदयपुर से पारसनाथ हजारों श्रद्घालुओं की उपस्थिति में 1800 श्रद्धलुओं को भावभीनी शुभकामनाएं दी गईं।
सभी तीर्थ यात्रियों को अभिमंत्रित माला और लोंग देकर तिलक लगाकर विदा करते हुए मुनिश्री ने कहा कि चूंकि हर समाज हर धर्म में अपने-अपने तीर्थ का महत्व है। हिन्दुओं में वैष्णो देवी, इस्लाम में मक्का-मदीना, सिख में अमृतसर वैसे ही शाश्वत तीर्थराज सम्मेद शिखरजी की यात्रा का महत्व है और यह मेरी 12वीं स्वर्णिम यात्रा है। ऐसी यात्रा जो हमारे जीवन के अर्थ बदल सकती है, ऐसी यात्रा जो बीस तीर्थंकरो और करोडों- करोडों मुनिराजों की मुक्ति स्थली है जिसके दर्शन मात्र से जन्मों-जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। जो आत्मा से परमात्मा की ओर जाने की प्रेरणा देती है। ऐसी यात्रा जिसका कण-कण मस्तिष्क पर धारण करने जैसा है, यह स्वर्णिम यात्रा अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का महापर्व है। इस शाश्वत तीर्थ की यात्रा वही यात्री कर सकता है जिसने दुर्गतियों का बन्ध नहीं किया हो।
मुनिश्री ने बताया कि सभी सौभाग्यशाली है, जो इस स्वर्णिम यात्रा के सहयात्री बनकर तीर्थराज की वन्दना करने, जीवन के उस अर्थ को प्रारम्भ करने जा रहे है, जो अक्षय और अनन्त सुख को देने वाले है। मुनि द्वारा तीर्थ यात्रा के कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु जिन लोगों ने कार्य किया उनकों इंगित करते हुए कहा कि पत्थर वही पेड़ खाता है जो फल देता है, जिन लोगों ने शाश्वत तीर्थ यात्रा को सफल क्रियान्विती करने हेतु दिन-रात अथक परिश्रम कर और अपने घर परिवार की स्वयं की अड़चनों को दरकिनार करते हुये सभी तीर्थ यात्रियों को सुख सुविधा देने के लिये इसको अंजाम तक पहुंचाया उन सबको मेरा शुभाशीर्वाद। उनके उज्ज्वल और मंगल भविष्य की कामना करता हूं। इस जिन्दगी में दो चीजों पर कभी भरोसा मत करना जो कभी भी साथ छोड़ देते हैं। एक शरीर और दूसरा समय। शरीर सबसे पहले धोखा देता है, कब इसकी हलचल कम हो जाये, खत्म हो जाये पता ही नही लगता और दूसरा समय उसका क्या भरोसा, समय कब तुम्हारी जिन्दगी में क्या मोड़ ले आये, कुछ पता नहीं।