उदयपुर जिला मुख्यालय से 60 कि.मी. दूर कुराबड- बम्बोरा मार्ग पर अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के बीच स्थित है मेवाड़ का प्रमुख शक्तिपीठ ईडाना माताजी जो राजपूत समुदाय, भील आदिवासी समुदाय सहित संपूर्ण मेवाड़ की आराध्य हैं।
लोगों में विश्वास है कि लकवा ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक होकर जाते हैं। मां का दरबार खुले चौक में स्थित है. मान्यडता है कि यहां देवी की प्रतिमा माह में दो से तीन बार स्व जागृत अग्नि से स्नान करती है. इस अग्नि स्नान से मां की सम्पूर्ण चढ़ाई गई चुनरियां, धागे आदि भस्म हो जाते हैं. इसी अग्नि स्नान के कारन यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया. माँ की प्रतिमा के पीछे अगणित त्रिशूल लगे हुए है. यहाँ भक्त अपनी मिन्नत पूर्ण होने पर त्रिशूल चढा़ने आते है. संतान की मिन्नत रखने वाले दम्पत्तियों द्वारा पुत्र रत्न प्राप्ति पर यहां झूला चढा़ने की भी परम्परा है. इसके अतिरिक्त लकवाग्रस्त शरीर के अंग विशेष के ठीक होने पर रोगियों के परिजनों द्वारा यहाँ चांदी या काष्ठ के अंग बनाकर चढ़ाए जाते हैं.प्रतिमा स्थापना का कोई इतिहास यहाँ के पुजारियों को ज्ञात नहीं है. बस इतना बताया जाता है कि वर्षों पूर्व यहाँ कोई तपस्वी बाबा तपस्या किया करते थे. बाद में धीरे-धीरे पडोसी गांव के लोग यहाँ आने लगे.
कभी बिलकुल बीहड़ में स्थित इस शक्ति-पीठ में इन दिनों काफी विकास कार्य हुए हैं. श्री ईडाना मां मंदिर ट्रस्ट के सरंक्षक श्री लवकुमार सिंह कृष्णावत (कुराबड) ने बताया कि विगत कुछ वर्षों में भामाशाहों के सहयोग एवं मंदिर के चढ़ावे से यहाँ धर्मशाला निर्माण, गौशाला निर्माण, रोगियों को मुफ्त भोजन एवं आवास सहित और कई जनोपयोगी कार्य करवाए गए हैं.
प्रमुख स्थल- माँ का दरबार, अखंड ज्योति दर्शन, धुनी दर्शन, गौशाला, विस्तृत भोजनशाला, रामदेव मंदिर आदि। प्रमुख दर्शन – प्रातः साढ़े पांच बजे प्रातः आरती, सात बजे श्रृंगार दर्शन, सायं सात बजे सायं आरती दर्शन यहाँ प्रमुख दर्शन हैं. इस शक्तिपीठ की विशेष बात यह है कि यहाँ माँ के दर्शन चौबीस घंटें खुले रहते है. सभी लकवा ग्रस्त रोगी रात्रि में माँ की प्रतिमा के सामने स्थित चौक में आकर सोते है. नवरात्रि में यहां भक्तों की काफी भीड़ रहती है. इसके अतिरिक्त सभी प्रमुख त्यौहार यहां धूमधाम से मनाये जाते है.
जयप्रकाश माली