देसी राखियों की जगह ली चाइनीज राखियों ने
उदयपुर। देश के परंपरागत त्योहार रक्षाबंधन पर भी चाइना ने कब्जाक कर लिया है। बहनें जिस राखी को भाइयों की कलाई पर बांधती है। पहले वो राज्य के विभिन्न शहरों सहित उदयपुर में भी कई परिवारों द्वारा बनाई जाती थी और लोगों को रोजगार उपलब्ध होता था।
देसी राखी का यह धंधा कुछ वर्षों से समाप्ती प्राय: होता जा रहा है, क्योंकि इस देसी धंधे में भी चीन ने अब धाक जमा ली है। बाजार में इन दिनों चाइनीज राखियों की बहार है।
हमारे धंधे पर डाका : शहर के कई परिवार राखी उद्योग से जुड़े हुए हैं। जिनका पुश्तैनी काम राखी बनाने का ही है। इन परिवारों में महिलाएं, बच्चे, युवा राखी बनाने का काम सालभर करते हैं। बोहरवाड़ी निवासी शब्बीर बोहरा कहते हैं कि राखी बनाने का काम पिछली कई पीढिय़ों से चला आ रहा है। पहले उदयपुर जिले में ही नहीं अन्य जिलों के व्यापारी भी राखी लेकर जाते थे। छह महीने पहले अपने ऑर्डर बुक करवाते थे, लेकिन अब खपत कम हो गई है। चाइना की राखियों का बोलबाला ज्यादा है। ऐसे ही शक्तिनगर निवासी आनंद बजाज का कहना है कि उनका भी यह पुश्तैनी धंधा है। पहले घर का हर सदस्य सालभर राखी बनता था, लेकिन अब कुछ राखियां घर पे बनाते है और कुछ राखियां वे खुद भी चाइना की खरीद कर होलसेल का व्यापार करते हैं। हाथ से बनाई जाने वाली राखियां अब सिर्फ ग्रामीण अंचलों में ही पसंद की जाती है। शहर में अब फेंसी और चाइना की राखी का चलन बढ़ गया है।
चाइना का कब्जा : देश में तो राखी का व्यापार अरबों रुपये में होता है, लेकिन अगर उदयपुर की बात करे, तो यहां हर साल राखी पर 60 से 75 लाख तक व्यापार होता है। कभी यह व्यापार सिर्फ देसी हाथों में था, लेकिन अब इस पर विदेशियों का कब्जा हो गया है। सूरजपोल स्थित राखी के विक्रेता राजू भाई का कहना है कि जनता की डिमांड पर हमको ना चाहते हुए भी चाइना की राखियां रखनी पढ़ती है। राजू भाई मानते हैं कि किसी समय में ये राखियों की बड़ी खेप अहमदाबाद और जयपुर से आती थी, लेकिन अब पूरा बाजार चाइना और फेंसी राखियों की जद्द में है। देसी राखी दो से 60 रुपए तक की होती है, जबकि चाइना से आई राखियां 20 से 100 रुपए में बेची जा रही है। कुछ राखियों की कीमत 150 रुपव से 300 रुपए तक भी है।