तेरापंथ समाज ने मनाया अणुव्रत चेतना दिवस
उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पर्युषण महापर्व के तहत बुधवार को अणुव्रत चेतना दिवस मनाया गया।
शासन श्री मुनि सुखलाल ने कहा कि अणुव्रत के प्रवर्तक आचार्य तुलसी थे जिन्होंने कहा कि अपना अणुव्रत, अपना अनुशासन। संयम पथ जीवन हो। देश को आजादी मिली। आचार्य तुलसी ने सोचा कि हमारा देश विदेशी शासकों से तो मुक्त हो गया लेकिन अपने मन से देशवासी मुक्त होने चाहिए। उन्होंने नैतिकता का अभियान शुरू किया। उस अभियान को राजनेताओं डॉ राजेन्द्र प्रसाद, पंडित नेहरू आदि का सहारा मिला। देश पर इसका प्रभाव भी पड़ा और आज विदेशों तक में इसे मानने लगे हैं।
इसके अलावा अणुव्रत में दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता, मानवीय एकता, सहअस्तित्व की भावना, साम्प्रदायिक सद्भाव, अहिंसात्मक प्रतिरोध, व्यवहार में प्रामाणिकता, सघन शुद्धि में आस्था, अभय, तटस्थता, सत्यनिष्ठा का विकास आदि भी आते हैं। उदयपुर के ऐसे कई लोग हुए देवीलाल सामर, भूरेलाल बया जो पक्के अणुव्रती थे। भंवरलाल धाकड़ ने मेवाड़ में अणुव्रत फैलाने में काफी अहम योगदान दिया। वर्ष 1971 में मुझे आचार्य ने मौका दिया। मैंने गांव गांव ढाणी ढाणी घूमकर अणुव्रत का प्रचार किया। उदयपुर की अणुव्रत समिति के माध्यम से मिर्जा बेग ने युवकों को इस ओर अग्रसर किया। अणुव्रत के माध्यम से गीत गायन प्रतियोगिता का प्रणीता तलेसरा अच्छा प्रसार कर रही हैं।
मुनि मोहजीत कुमार ने कहा कि व्रत स्वयं से जुड़ने की एक दिव्य प्रेरणा है। यह मन की तृप्ति का सर्वोत्तम उपाय, हृदय की पवित्रता का आधार है जो आसन, कामना के द्वार बंद करता है। इससे इन्द्रिय नियंत्रण और रोग मुक्ति होती है। भव भ्रमण परित होता है। संकल्प शक्ति का विकास होता है। करणीय- अकरणीय का विवेक जागता है। कषायों का त्याग कर अंतरंग व्रत आधार है व्रत। व्रत आत्मविश्वास का विकास करता है। महाव्रत और अणुव्रत। व्रतों का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है। बल्कि इसे आचरण का आधार बनाया गया है। श्रावक जीवन में व्रत का विशेह महत्व है। जैन परंपरा में श्रावक वो ही जो कोई न कोई व्रत अपनाता है। श्रावक कोई टीका या लेबल नही है, जिसमें व्रत की चेतना का आरंभ हुआ हो वो श्रावक है। आत्महत्या नही करने, वृक्ष नही काटने का संकल्प सबसे बड़ा व्रत है। किसी न किसी व्रत की चेतना का जागरण जरूर करें। भव को पार लगाने का माध्यम व्रत है। वाणी का संयम व्रत की चेतना है। व्रत आत्मविश्वास जगाता है। निरपराध प्राणी की हत्या नही करूँगा। आपने सांप को मार तो दिया लेकिन उसकी छवि सर्प की आंखों से मादा सर्प की आंखों में चली गई। मद सर्प ने उसका बदला लिया। व्रत की चेतना का आधार हमसे जुड़ा है। उन्होंने गीत आओ ज्योति जगाओ की प्रस्तुति दी।
मुनि भव्य कुमार ने कहा कि राह से भटके संतों को राह बताने वाले युवकों को संत ने व्रत का रास्ता बताया। जो रास्ता श्रावक जानता है, संत नही जानते लेकिन जो संत जानते हैं वो श्रावक नही जानता। छोटे भाई ने सप्ताह में दो दिन खाना नही खाने और शराब नही पीने का संकल्प किया लेकिन बड़े भाई ने व्रत जबरन तुड़वा दिया। दोनों का अगले भव में फिर जन्म हुआ। छोटा भाई रानी और बड़ा भाई दासी के यहां हुआ। राजा ने कहा कि इस दिन जिसने जन्म लिया है वो राजकुमार का मित्र होगा। व्रत की विराधना के प्रति यह परिणाम हो सकता है। व्रत की अवमानना और अनुशंसा का प्रभाव रहता है।
बाल मुनि जयेश कुमार ने गीत अणुव्रत को अपनाएं हम.. के माध्यम से अणुव्रत की महत्ता बताई।