शहर के 500 व्यापारियों व 100 होटलों को निःशुल्क बांटेगे, कंपोस्टेबल कैर्री बैग्स ओर गार्बेज बैग्स
उदयपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2 अक्टूबर से देश में सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाये जाने की घोषणा के तहत शहर में कल से प्लास्टिक पर बैन लागू हो जायेगा।
इण्डियन कंपोस्टेबल प्लास्टिक एसोसिएशन के महासचिव अशोक बोहरा ने बताया कि इजी फ्लेक्स की ओर से शहर के 500 व्यापारियों व 100 होटलों को 500-500 मकई के स्टार्च से बनने वाली कंपोस्टेबल पाॅलीबैग वितरीत किये जायेंगें। 100 प्रतिशत हानिरहित तो है ही साथ ही इससे बनने वाला प्रोडक्ट अधिकतम 6 माह में मिट्टी के संपर्क में आकर स्वतः खाद में परिवर्तित हो जाता है जिससे कचरा बनने की समस्या समाप्त हो जाती है।
इजी फ्लक्स पॉलीमर्स के प्रबंध निदेशक आदित्य बोहरा ने बताया इनकी कंपनी राजस्थान की एकमात्र कंपनी है जिसे सेंट्रल पौलुशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा कंपोस्टेबल प्लास्टिक बनाने का लाइसेंस मिला हुआ है। कंपोस्टेबल मकई स्टार्च से बनने वाले प्रोडक्ट आमजन के साथ-साथ खेती व पेड़-पौधों के लिये के लिये भी काफी लाभदायक होते है। इस प्रोडक्ट सामान्य प्लास्टिक का एक मात्र उपाय है जो सभी के लिये लाभदायक है। इससे कम्पोस्टेबल प्लास्टिक सामान्य प्लास्टिक बनाने वाली मशीनों से ही बनाया जा सकता है। यह सामान्य प्लास्टिक से मामूली महंगा हो सकता है लेकिन जीवन की कीमत से अधिक नहीं। यह जूट बैग से काफी सस्ता होगा। मजबूती के मामलें में यह प्लास्टिक सामान्य प्लास्टिक से अधिक मजबूत है। इसका लाईसैंस लेने की प्रक्रिया काफी जटिल है।
स्टार्च से बनेंगे अनेक प्रोडक्ट- उन्होेंने बताया कि मकई के स्टार्च से पत्तल, दोने, डिस्पोजेबल गिलास,चम्मच, कप, प्लेट सहित अनेक प्रोडक्ट बनाये जा सकते है। बोहरा ने बताया कि शीघ्र ही लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये रोजगार के लिये युवाओं को प्रमोट किया जायेगा।
अशेाक बोहरा ने बताया कि देश के करीब 18 राज्यों में प्लास्टिक को बैन किया जा चुका है। प्लास्टिक के अल्टरनेट के रूप में पेपर बैग, पेपर बाॅक्स या कपड़े की थैलिया है लेकिन ये सभी अस्थायी है। इसका एक मात्र समाधान कंपोस्टेबल प्रोडक्ट के रूप में मक्की के स्टार्च से बनी थैलिया ही है। उन्होंने बताया कि भाभा रिसर्च इन्स्टीट्यूट मुबंई ने ग्वारगम से बनने वाले पॉलीमर्स की तकनीक भी विकसित की है। जोधपुर में ग्वारगम और मेवाड़ मक्का बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। ऐसे में निकट भविष्य में इन क्षेत्र में पीएलए बनाने के प्लान्ट भी लगाए जा सकते है। इन क्षेत्रों में रोजगार की संभावनायें भी बढ़ेगी। इनसे बनने वाले उत्पादों की खपत में वद्धि होगी और लागत में कमी आयेगी।
उन्होेंने बताया कि सामान्य प्लास्टिक जन सामान्य के जन जीवन पर ही नहीं पशु, खेती के लिये भी अत्यधिक हानिकारक है। पेट्रो प्रोडक्ट से निर्मित होने वाला सामान्य प्लास्टिक से निकलने वाले हानिकारक तत्व हर उस वस्तु में समाहित हो जाते है जिनका हम दैनिक दिनचर्या में काम लेते है और वह तत्व आगे जा कर बहुत बड़ी बीमारी में परिवर्तित हो जाता है। उदयपुर जैसे देश के अनेक शहरों में प्रतिदिन 10-20 टन प्लास्टिक कचरा जरनेट होता है और वह अगले 300 साल तक भी किसी भी रूप में कम्पोस्ड नहीं होता है।