उदयपुर। माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान में त्रिदिवसीय ’’जनजाति पारम्परिक भित्ति चित्रण एवं माण्डणा कला‘‘ कार्यशाला शुरू हुई। कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए निदेशक (टी.आर.आई.) प्रो. विजयसिंह ने कलाकारों को मनोयोग से कला साधना करने हेतु प्रेरित किया।
विशिष्ट अतिथि डॉ. पूर्णाशंकर मीणा ने कहा कि जनजाति समुदाय के लोगों में कला की भरपूर सम्भावनाएं है। हमें अपनी कला एवं संस्कृति संवारने का दायित्व निभाना चाहिये। जनजाति माण्डणा कला की समाज में अच्छी मांग होने के कारण कलाकारों द्वारा इसे आय अर्जन का साधन भी बनाया जा सकता है। सह आचार्य (टीआरआई) डॉ. राकेश दशोरा ने कला संस्कृति से संबंधित भावी योजनाओं की जानकारी प्रदान की। संचालन एवं आभार प्रदर्शन उप निदेशक ज्योति मेहता ने किया। कार्यशाला का शुभारम्भ डॉ. पूर्णाशंकर मीणा ने केनवास पर पारम्परिक माण्डणा का चित्र उकेर कर किया।
कार्यशाला में बारां के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार मुकन्दीलाल सहरिया, शाहबाद (बारां) की महिला कलाकार हेमलता एवं गुड्डी बाई ने भी सहरिया कलाकृतियां केनवास पर उकेरना आरम्भ कर दिया है। बांसवाडा से आये बंशीलाल डामोर एवं नारायणशंकर डामोर ने वागड के जनजाति चित्रण परम्परा शैली में कृति निर्माण आरम्भ कर दिया है। बून्दी के प्रसिद्घ भित्ति चित्रण के चितेरे ओमप्रकाश मीणा एवं सुरेश मीणा ने विभिन्न मांगलिक अवसरों पर की जाने वाली भित्ति चित्रकारी को उकेरना आरम्भ कर दिया है। उदयपुर खेरवाडा क्षेत्र के भील जनजाति कलाकार यशपाल बरंडा, पन्नालाल दामा एवं सवालाल मीणा अपनी पारम्परिक ’’गोगेज‘‘, ’’भराडी‘‘ एवं ’’माताजी‘‘ का चित्रण करने में जुट गये है। कार्यशाला का 14 अप्रेल तक चलेगी।