संस्कृत श्रावकाचार प्रशिक्षण शिविर आज से
उदयपुर। आचार्य सुकुमालनंदी महाराज ने कहा कि यदि शरीर में कोई छोटी सी बीमारी हो तो हम उसका इलाज करवाने बड़े-बड़े डॉक्टरों के पास जाते हैं, क्योंकि बीमारी को कभी छोटा नहीं समझा जाता है। हमें जीवन में कर्जा, बीमारी, आग व कषाय इन चार चीजों को कभी भी छोटी नहीं आंकना चाहिये।
इसके बावजूद हम शारीरिक बीमारियों का तो ध्यान रखते हैं लेकिन आत्मा संबंधी बीमारियों राग, द्वेष, मोह, माया लोभ को सदैव अनदेखा करते हैं। इस बात को कविता में उदृत करते हुए उन्होंने कहा कि तन नहीं छूता कोई चेतन निकल जाने के बाद। फैंक देते हैं फूल को ज्यों, खुशबू निकल जाने के बाद।
उन्होंने उक्त बात आज सेक्टर 11 स्थित आलोक स्कूल के कांफ्रेंस हॉल में आयोजित विशेष प्रवचन के दौरान उपस्थित सैकड़ों श्रावकों के समक्ष कही। आचार्य ने कहा कि आत्मा के रोगों का इलाज जरूरी है। यदि सद्गुरू एवं भगवान रूपी डॉक्टर के पास जाकर यदि आत्मा के रोगों का इलाज नहीं करवाया तो ये रोग रौद्र रूप धारण कर आत्मा को पतन के द्वार तक ले जाते हैं। इसलिए शरीर के रोगों के साथ अपनी आत्मा के रोगों का भी ध्यान रखना चाहिये।
कल से प्रारम्भ होगा संस्कृत श्रावकाचार प्रशिक्षण शिविर-करीब 2 हजार वर्ष पूर्व लिखा गया रत्नकरण्डक श्रावकाचार एक प्राचीन संस्कृत ग्र्रन्थ है जो श्रावकों के समस्त कर्तव्यों को उद्घाटित करता है। इसका अध्यापन स्वयं आचार्य सुकुमालनन्दी आदिनाथ भवन में 20 अगस्त से प्रतिदिन 9 बजे से करायेंगे। शिविर में सैकड़ों श्रद्धालुगण भाग लेंगे। सभी को पुस्तक, पेन व अन्य सामग्री वर्षायोग समिति द्वारा उपलब्ध करवाई जाएगी।