13 दिन तक मौत से जीवित रहने के लिए संघर्ष करने के बाद आखिरकार वह नहीं रही.. उसने दम तोड़ दिया। मरकर वह पूरे देश की बेटी बन गई। इस सुषुप्त देश में भेड़ चाल में विश्वास करने वाला आम आदमी भी उसकी मौत के विरोध में खड़ा हो गया।
युवतियां और महिलाएं वाकई में मन से उसके साथ हो सकती हैं लेकिन युवा और आदमी भी क्या उसके साथ हैं या सिर्फ यह समय की मांग है, इसलिए साथ हो लिए हैं? इस पर सोचने-विचारने की जरूरत है। ऐसे कितने युवा और संगठन हैं जिन्हों ने नववर्ष नहीं मनाने का मन से संकल्प किया है। ऐसे सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार करने का निर्णय किया है तब तक, जब तक कि इस गैंगरेप के आरोपियों को सजा न मिल जाए या जब तक कि स्वयं संकल्प न कर लें कि किसी युवती, महिला की ओर कुत्सित मानसिकता से नहीं देखेंगे।
शनिवार को युवती की मृत्यु हो गई। रविवार को शोक मना लिया गया लेकिन सोमवार को नववर्ष की तैयारियां की जाएंगी और मंगलवार को नववर्ष मनाया जाएगा। इसका सबूत दे रहे हैं आज के समाचार-पत्र जो नववर्ष मनाए जाने वाले होटलों, रिसॉर्ट के प्रचारित माध्यमों से भरे पडे़ हैं। इन्हें देखकर कतई नहीं लगता कि किसी को युवती की मौत का रंज भर है। आवश्यकता खुद को विचार करने की जरूरत है। ये ऐसी बातें हैं जिन्हें कोई किसी पर जबरन लाद नहीं सकता। इन पर तो खुद को ही विचार करना होगा।
गैंगरेप की शिकार युवती यूं भले ही स्वर्ग सिधार गई लेकिन पीछे देशवासियों के साथ यहां के संविधान को भी चुनौती दे गई कि अंग्रेजों के समय से बने संविधान में संशोधन की जरूरत है। पूर्व राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में गैंगरेप के दूसरे मामले के आरोपियों की फांसी की सजा को माफ कर दिया था लेकिन अब संभवत: इस युवती की मौत से अब सभी को सीख मिले.. न सिर्फ गैंगरेप बल्कि महिला उत्पीड़न के उचित और सही मामलों में आरोपियों को ऐसी सजा मिले कि वे उदाहरण बन जाए दूसरों के लिए… ऐसा कृत्य करने से पहले वे दस बार सोचने पर मजबूर हो जाएं..।