नवीन संभावनाओं एवं गुणवत्ता संवर्धन से ग्रामीण खुशहाली
Udaipur. एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. ओ. पी. गिल ने कहा कि भारत आम, चीकू, काजू आदि के उत्पादन में विश्व में अग्रणी है लेकिन वर्तमान में 30 फीसदी से ज्यादा फल एवं सब्जियां खाद्य प्रंसस्करण की उचित व्यवस्था न होने के कारण नष्ट हो रही है।
वे शुक्रवार को सीटीएई सभागार में खाद्य प्रंसस्करण की नवीन संभावनाओं व गुणवत्ता संवर्धन द्वारा ग्रामीण समृद्धि विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि खाद्य प्रंसस्करण की उचित सुविधाएं एवं तकनीकी द्वारा इस नुकसान को कम किया जा सकता है, साथ ही इससे खेतों के आसपास इन ईकाइयों के लगने से महिला रोजगार की अपार संभावनाएं है व इससे किसानों की उद्यमिता विकास एवं इससे ग्रामीण खुशहाली संभव है।
आयोजन सचिव डॉ. वी. डी. मुदगल ने बताया कि संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, उडी़सा, कर्नाटक, बिहार एवं झारखण्ड आदि राज्यों के 200 से अधिक वैज्ञानिक व प्राध्यापक भाग ले रहे है। संगोष्ठी में कुल चार सत्र व एक पोस्टर सत्र रखा गया। मुख्य सत्र खाद्य प्रसंस्करण की नवीन तकनीकी में अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों व खाद्य प्रसंस्करण तकनीकी द्वारा गुणवत्ता एवं कीमत वृद्धि, गुणवत्ता वृद्धि तथा ग्रामीण स्तर पर उद्यमिता विकास द्वारा ग्रामीण समृद्धि पर रखे गए हैं। इन चारों सत्रों में लगभग 150 अनुसंधान पत्रों का वाचन होगा।
अध्यक्षता करते हुए सीटीएई के अधिष्ठाता डॉ. एन. एस. राठौड़ ने कहा कि आने वाला समय खाद्य प्रंसस्करण तकनीकी का है और इसी दिशा में 12वीं पंचवर्षीय योजना में खाद्य प्रंसस्करण द्वारा मूल्य वृद्धि को द्धितीय कृषि में रूप में लिया गया है। इस क्षेत्र में क्षमता विकास के लिये देश में लगभग 1050 खाद्य प्रंसस्करण केन्द्र स्थापित किये है और अधिक केन्द्रों के स्थापन की जरूरत है। इससे खासकर फल सब्जियां तथा दूध को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
मुख्य वक्ता डा. आर. के. जैन ने कहा कि पिछले 60 वर्षो खाद्य उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि से हमने आधी लड़ाई तो जीत ली है लेकिन अब खाद्य प्रंसस्करण से 30 फीसदी नष्ट होने वाले फल/सब्जी को बचाने की लडाई अभी बाकी है। उन्होने कहा कि देश के पारम्परिक खाद्य पदार्थो को विकसित कर पश्चिम देशों में निर्यात की असिमित संभावनाओं पर घ्यान देने की आवश्यकता है।
विशिष्टर अतिथि डा. गजराज सिंह बीज एवं मसालों के प्रसंस्करण के साथ ही होर्टीकल्चर में निर्यात की अपार संभावनाओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि थाइलैण्ड जैसा छोटा देश वहाँ पर उत्पादित पूरे फलो की 100 फीसदी प्रसंस्करण कर रहा है। देश में एफडीआई युग में अब प्रसंस्करणीत खाद्य पदार्थों का बहुत बड़ा बाजार विकसित हो रहा है। आवश्यकता सिर्फ तकनीकी द्वारा उच्च गुणवत्ता के खाद्य पदार्थो को विकसित करने की है। अंत में डा. संजय जैन ने आये अतिथियों एवं अधिकारियों को धन्यवाद दिया।