उदयपुर। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी का कंसेप्ट शहरी क्षेत्र में तो जारी है, लेकिन इसे ग्रास रूट लेवल पर ले जाने की आवष्यकता है। बात सही है कि संचार एवं सूचना प्रौ़द्योगिकी की भाषा का क्लिष्ट स्वरूप होने के कारण आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में इसका जो फायदा मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पा रहा है। अंग्रेजी और हिंदी माध्यम के साथ साथ इसे क्षेत्रिय भाषा में भी जारी किया जाना चाहिए।
ये विचार जयनारायण व्यास विवि जोधपुर के कुलपति प्रो बीएस राजपुरोहित ने व्यक्त किए। वे राजस्थान विद्यापीठ के कंप्यूटर एंड आईटी विभाग द्वारा आयोजित उच्च षिक्षा में सूचना एवं संप्रेषण तकनीक राष्टीय सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सूचना क्रांति को लेकर हमारे देश में गत 15 दशकों में काफी काम हुआ है, लेकिन यह सिर्फ एक ही दिशा में अग्रसर हुई। इसमें सबसे पीछे वे ग्रामीण क्षेत्र रह गए, जो पूर्णत आदिवासी बाहुल्य थे। यही कारण है कि आज भी उदयपुर संभाग के कई ऐसे स्थान हैं, जहां इस क्रांति का फायदा नहीं मिल पा रहा है। सेमिनार में एमडीएस विवि अजमेर के डॉ. नीरज भार्गव का कहना है कि आईटी को क्षेत्रीय भाषा में जारी करने से इसके परिणाम भी सार्वजनिक होंगे तथा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में भी प्रभाव बढे़गा। इसके लिए इस संचार व्यवस्था को समझाने वाले भी क्षेत्रीय स्तर के ही होना चाहिए, ताकि वहां के लोगों की बातों को समझे और उन्हें समझा भी सकें।
आईटी का और बदलेगा स्वरूप : अध्यक्षता करते कुलपति प्रो एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि वर्तमान में जो आईटी का स्वरूप है यह कुछ दषकों पहले ऐसा नहीं था। गत 7 दशकों में इस क्षेत्र में जो परिवर्तन आया है, उसमें भारत ने कई देशों को पछाड़ दिया है। आगामी स्वरूप की बात की जाए तो डिजिटल क्षेत्र में आने वाले नित नए एप्लीकेशन लांच हो रहे हैं जिसने आम आदमी के जीवन को इतना सरल कर दिया है कि जिसकी उसे खुद आशा नहीं थी। सेमिनार में विशिष्टर अतिथि प्रो एनएस राव, रजिस्ट्राार डॉ. देवेंद्र जोहर, निदेशक मनीष श्रीमाली, डॉ. गौरव गर्ग ने विचार व्यथक्तर किए। नेहा सिंघवी ने संचालन किया।