जन्मजात सुनने और बोलने में अक्षम बच्चों के लिए
उदयपुर। काकलियर इम्प्लांट पर उदयपुर के पेसिफिक मेडिकल काँलेज एंड हाँस्पीटल में आयोजित हुई दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का समापन हुआ। सेमिनार में काकलियर इम्प्लांट तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर देश और दुनिया से आये 60 से ज्यादा जाने मानें विशेषज्ञ चिकित्सकों नें मंथन किया।
उन्होंने तकनीक को आदिवासी बहुल उदयपुर अंचल के जन्मजात सुनने और बोलने में अक्षम बच्चों के लिए जीवन ज्योत बताया। उदयपुर अंचल में इस तकनीक पर अपनी तरह की इस पहली काफ्रेंस के आयोजन का सुखद पहलू यह रहा कि इस दौरान जन्मजात बोलने और सुनने में अक्षम 6 बच्चो को सफल ऑपरेशन के माध्यम से काँकलियर यूनिट प्रत्यारोपित की गई। एक महिने के अंतराल में अच्छी तरह से स्थापित होने के बाद विशेषज्ञ चिकित्सकों द्धारा इस यूनिट को स्वीच ऑन किया जाएगा। इस सबके बाद आगामी 6 महिनों तक इन सभी 6 बच्चों को स्पीच थैरेपी के माध्यम से बोलने और सुनने मे सक्षम बनाया जाएगा साथ ही बच्चों के अभिभावकों को भी काउंसलिंग के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाएगा। दरअसल लाभान्वित इन 6 बच्चो में सें 3 बच्चे शहर के महेशाश्रम संस्थान के हैं। यहाँ यह बात भी उल्लेखनीय है कि इस तकनीक के आँपरेशन के दौरान न्यूनतम 6 लाख से अधिकतम 12 लाख रुपये तक का खर्च आता हैं, लेकिन इन सभी 6 बच्चो को पेसिफिक मेडिकल काँलेज एंड हाँस्पीटल की ओर से निशुल्क उपचारित किया गया हैं।
कैसे उपयोगी है कांकलियर इम्प्लांट तकनीक – कांकलियर इम्प्लांट तकनीक में आँपरेशन के दौरान कान के अंदर कोकलिया पार्ट पर सर्जरी की जाती हैं। सर्जरी में मस्तिष्क से इम्प्लांट जोडा जाता है इसका दूसरा भाग प्रोसेसर कान के पीछे फिट किया जाता है। इम्प्लांट के इलेक्टोड का सम्बन्ध कान के बाहर लगाये जाने वाले प्रोसेसर से होता है। दोनों चुम्बक से जुडे रहते है। प्रोसेसर से ध्वनि उर्जा इम्प्लांट में पहुंचती है यहां इलेक्टोड इस उर्जा को इलेक्टोनिक उर्जा में बदल कर इम्पल्स मस्तिष्क का भेजता है जिससे बच्चों में सुनने की क्षमता का विकास होता है साथ ही स्वीच थैरेपी के माध्यम से वे बोलने लगते हैं।