उदयपुर। लोक कला एवं शिल्प परंपरा के प्रोत्साहन के लिये उदयपुर के शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित ‘‘शिल्पग्राम उत्सव-2014’’ के तीसरे दिन शिल्पग्राम के हाट बाजार ने अपनी रंगत व रफ्तार पकड़ी। दोपहर में बड़ी तादाद में लोग शिल्पग्राम पहुंचे व खरीददारी के साथ मेले का लुत्फ उठाया।
दस दिवसीय उत्सव के तीसरे दिन हाट बाजार में कलात्मक व घरेलु उपयोग की वस्तुओं को अपने घर ले जाने की चाह में बड़ी संख्या में लोग शिल्पग्राम पहुंचे तथा हाट बाजार का जायजा लेने के साथ-साथ खरीददारी की। हाट बाजार में अलंकरण में विभिन्न प्रकार के आभूषण शिल्पी दिन भर आने वाली महिलाओं को जेवर दिखाने में लगे रहे। इस बाजार में महिलाओं ने ब्रेसलेट, इयरिंग्स, चेन आदि के प्रति रूचि दिखाई।
हाट बाजार में ही पूर्वोत्तर राज्य से आये शिल्पकारों के उत्पाद लोगों का आकर्षण का केन्द्र रहे। इसमें बैम्बू क्राफ्ट, ड्राई फ्लॉवर्स, परिधान आदि प्रमुख हैं। हाट बाजार में लोगों ने सर्दी से निजात पाने के लिये नमदे की बनी जूतियाँ, कच्छी शॉल, पट्टू, वूलन जैकेट्स, लैदर जैकेट्स आदि की दूकानों पर अपनी पसंद को परखा व खरीदा। हाट बाजार में ही लोक कलाकारों बहुरूपियों ने लोगों को अपनी कला के बारे में जानकारी दी व कला प्रदर्शन किया। दोपहर में कई युवा कलाकारों के साथ थिरकते भी देखे गये। मेले में इसके अलावा लोगों ने खान-पान व ऊँट की सवारी आदि का आनन्द उठाया। मेले में वारली झोंपड़ी के सामने बंजारा फूड जोन तथा वस्त्र बाजार के व्यंजन क्षेत्र में लोगों व कलाकारों को पारपंरिक दाल बाटी, ढोकला, पान्या आदि नियंत्रित मूल्य (तय शुदा दरों) पर भोजन उपलब्ध करवाया जा रहा है।
रोगन कला ने ली करवट : गुजरात के कच्छ अंचल की रोगन कला जो विलोपन की ओर अग्रसर हो रही थी उसे फिर से प्रचलन में लाने का प्रयास इसके शिल्पकार अरब हासम खत्री पिछले कई सालों से कर रहे हैं। अब उनके बेटेे अब्दुल हामिद खत्री ने इसी कला को अपना लिया है। अरब हासम बताते हैं कि करीब 300 साल पहले रोगन कला पर्शिया से भारत आई। उनका परिवार इस कला को कई पीढ़ियों से संजो रहा है किन्तु पिछले कुछ सालों से इसके कद्रदान कम हो गये।
‘नृत्य रूपा’ से प्रस्फुटित हुई शास्त्रीय शैलियाँ : ‘कलांगन’ पर मिजोरम का वांगला नृत्य ने अपनी प्रस्तुति से मन मोह लिया वहीं विशेष प्रस्तुति ‘नृत्य रूपा’ में हमारी शास्त्रीय नृत्य शैलियों का कलात्मक समावेश देखने को मिला। रंगमंच पर आयोजित सांस्कृतिक सांझ में गोवा का देखणी नृत्य दर्शकों को द्वारा काफी पसंद किया गया वहीं कश्मीर का रौफ पर भुम्बरो…. भुम्बरो… सुन दर्शक झूम उठे। रंगमंच पर मंगलवार को संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रायोजित ‘‘नृत्य रूपा’’ नृत्य नाटिका प्रमुख आकर्षण रही। शास्त्रीय नृत्य भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है इसका प्रतिरूप् शिल्पग्राम में कला प्रेमियों को देखने को मिला। प्रस्तुति में भरतनाट्यम का लास्य, कथक के ठुमके, ऑडिसी की भाव भंगिमाएँ, मणिपुरी नृत्य की सौम्यता व कथकली का नृत्याभिनय दर्शनीय बन सका। समूची प्रस्तुति एक पुष्प की भांति इन नृत्यों को एक माला में सुंदरता व लावण्यता के साथ परोसा गया। प्रस्तुति में भरतनाट्यम के अरूण शंकर, कथक में गौरी दिवाकर, ऑडिसी में शगुन भुटानी, कथकली में एम. अमलजीत तथा मणिपुरी में देवीसिंह ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में मेघालय का वांगला दर्शकों के लिये लुभावनी पेशकश रही। बड़े ढोल पर गारो जाति के कलाकारों ने अपने शौर्य का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में इसके अलावा इसके अलावा बैगा करमा, व मयूर नृत्य ने अपने नृत्य से अनुपम छटा बिखेरी।
आज : बुधवार को रंगमंच पर दर्शकों को नृत्य रूपा नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दोबारा देखने को मिल सकेंगी वहीं पूर्वोत्तर राज्य के नृत्य के साथ साथ गोटीपुवा, रौफ आदि नृत्य देखने को मिल सकेंगे।