तेरापंथ सभा का चतुर्दशी एवं उपस्थिति पर विशेष व्याख्यान
उदयपुर। अपने भाग्य का विधाता कौन है? इस बारे में हालांकि सभी के अपने अपने मत हैं। कोई ईश्वर को तो कोई अपने कर्मों को लेकिन हकीकत यही है कि अपने कर्मों का फल अपने को ही भोगना है। इसलिए अपने अच्छे-बुरे कर्मों के लिए किसी दूसरे को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
कुछ ऐसे ही विचार उभरकर आए चतुर्दशी एवं हाजिरी (उपस्थिति) पर आनंद नगर में तेरापंथी सभा के सान्निध्य में हुए विशेष व्याख्यान में जहां आचार्य राकेश मुनि, मुनि सुधाकर एवं मुनि दीप कुमार ने श्रावक-श्राविकाओं को संबोधन दिया।
आचार्य राकेश मुनि ने श्रद्धा से नमन करें हम… गीतिका से आरंभ करते हुए कहा कि हाजिरी (उपस्थिति) के तहत तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादाओं का पालन करना चाहिए। पांच महाव्रतों, समिति एवं गुप्तियों का पालन करना चाहिए। महाव्रतों में सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय आदि शामिल हैं वहीं आठ प्रवचन में 5 समिति तथा 3 गुप्ती शामिल हैं। चलते समय बात नहीं करनी चाहिए, जीव हिंसा नहीं हो, भाषा समृद्ध हो। खोज कर गृहस्थ के घर से भोजन-पानी लेना चाहिए। वस्त्र आवश्यकता से अधिक नहीं रखने चाहिए। मल-मूत्र के विसर्जन दौरान ध्यान रखना चाहिए।
तेरापंथ धर्मसंघ की आचार्य परम्परा पर आज भी लोगों को आश्चर्य होता है। कई बार हमसे पूछते हैं कि आचार्य अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर देते हैं जो आपसे छोटे हैं लेकिन फिर भी आपको कोई आपत्ति नहीं क्योंकि हमारे धर्मसंघ में अनुशासन सर्वप्रथम और सर्वोपरि है। इसमें किसी की सहमति या असहमति नहीं होती। केवल एक बार ऐसा हुआ जब आचार्य अपने उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं कर पाए और उनका स्वर्गारोहण हो गया। तब लाडनूं में सम्पूर्ण धर्मसंघ की मौजूदगी में उदयपुर में चातुर्मास कर रहे कालू स्वामी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई और उन्होंने आचार्य श्री का मनोनयन किया। मेवाड़ के महाराणाओं ने भी तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यों का सम्मान किया है। उन्होंने कहा कि विहार के बाद संतों को सब कुछ भूलकर आगे चलना चाहिए। किसी से कोई मोह-दुश्मनी नहीं। आगे चलते रहें और अपने व्यवहार को शुद्ध रखें। उन्होंने श्रावकों को सामायिक करने का उपदेश दिया। धार्मिक क्रिया साधना करनी चाहिए। कषाय का जन्म भावों से होता है। मन को खुश रखें। आनंदमय बनाएं। क्रिया में आलस्य नहीं करें। कषायों का वमन करें।
मुनि सुधाकर ने कहा कि सुख-दुख मिलते हैं या ईश्वर देता है। ब्रह्माण्ड नश्वर है। कुछ ने माना कि हम तो केवल निमित्त हैं। ईश्वर के द्वारा ही हो रहा है। जैन धर्म की विचारधारा इससे भिन्न है। जो सुख-दुख मिलता है, वह हमारे अपने किए हुए कर्मों का फल है। जब तक अपने कर्मों का फल भोग नहीं लेंगे तब तक मोक्ष नहीं मिलेगा। व्यक्ति स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है। स्वयं का उद्धार स्वयं ही कर सकते हैं। सुख-दुख, मान-अपमान, यश-अपयश के लिए व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार है। हर व्यक्ति अपनी तकदीर स्वयं लिखता है। एक सिद्धांत को सामने रखकर चलें तो निश्चय ही सफल होंगे। अच्छे कर्मों का फल अच्छा तथा बुरे कर्मों का फल बुरा मिलता है।
मुनि दीप कुमार ने कहा कि व्यक्ति में विवेक नहीं हो तो वह धार्मिक क्रिया नहीं कर सकता। प्रमाद से अप्रमाद, अधर्म से धर्म और भोग से अभोग की ओर जाने की प्रेरणा देता है धर्म। यदि विवेक के साथ जागरूकता होगी तो व्यक्ति धर्म की अनुपालना कर सकेगा। इससे पूर्व मुनि दीप कुमार ने सजग बनो.. बीती जा रही घड़ी, पल पल में टूट रही सांसों की घड़ी गीतिका सुनाई।
इसके बाद मुनि सुधाकर के निर्देशन में पूर्ण रूप से संस्कृत में भक्तामर का प्रशिक्षण ले रही नन्हीं बालिकाओं अनुश्री एवं पलक ने श्लोक सुनाए जिस पर श्रावक-श्राविकाओं ने ओम अर्हम की ध्वनि से साधुवाद किया। समाज के ही ऋषभ एवं डॉ. महिमा के भी दंपती के रूप में भक्तामर का प्रशिक्षण लेने पर साधुवाद किया गया।
सभा के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि आचार्य श्री का सोमवार सुबह 7.30 बजे आनंद नगर से विहार होगा। यहां से वे दो दिन महाप्रज्ञ विहार विराजेंगे। 20 को पंचरत्न काम्प्लेक्स में भंवरलाल करदा वाले के यहां और फिर 21 से 24 तक अहिंसापुरी स्थानक में विराजेंगे।