राजस्थान विद्यापीठ में शताब्दी का संघर्ष और राजस्थान विषय पर जुटे इतिहासविद
उदयपुर। राजस्थान में रियासती प्रक्रिया को समाप्त कर उत्तरदायी सरकार की स्थापना करने में राजस्थान का विशेष योगदान रहा। कारण यह था कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान संबंधित कई आंदोलन भी हुए। इसमें कुरीतियों के खिलाफ नियम बने तो महिला शिक्षा को लेकर नए नियमों को बनाए गए।
यह जानकारी इतिहासविद प्रो. पेमाराम ने गुरूवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के संघठक श्रमजीवी महाविद्यालय के इतिहास एवं संस्कति विभाग की ओर से आयोजित शताब्दी का संघर्ष 1857 से 1956 तक एवं राजस्थान विषयक राष्ट्रीाय सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता दी। प्रो. पेमाराम ने बताया कि राजस्थानी नेताओं ने तत्कालीन राजा महाराजाओं और अंग्रेजों के मध्य हुई संधियों का भी विरोध किया, लेकिन इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं आया। प्रजामंडल संगठन बनाए गए और राजा-महाराजाओं पर दबाव बनाया गया। इसके बाद रियासतों का एकिकरण हुआ और उसके बाद उत्तरदायी सरकार की स्थापना हुई। प्रो. पेमाराम ने कहा कि स्वतंत्रता के संघर्ष में राजस्थान के क्रांतिकारियों और नेताओं का खासा योगदान रहा है। अध्यक्षता करते कुलपति प्रो एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि आज के आपाधापी के समय में गुरु-शिष्यों में वे संबंध नहीं रहे जो पौराणिक समय में रहते थे। हमारे देश में प्रेम और राष्टीयता की शुरूआत 1857 की क्रांति, महात्मा गांधी के अहिंसा के नारे के माध्यम से सुदढ भारत का निर्माण किया। वर्तमान में हमें इन्हीं मूल्यों और संस्कति को बचाने की आवश्यकता है।
विशिष्ट अतिथि प्रो केएस गुप्ता ने कहा कि अंग्रेजों का मानना था कि राजस्थान के राज्य एकजुट नही हो सकेंगे, लेकिन जब आंदोलन शुरू हुए तो उनकी यह विचारधारा धरी रह गई। 1857 की क्रांति ने संबंधित कई नई क्रांतियों को जन्म दिया। इस क्रांति के दौरान यह भी तय था कि यदि वैधानिक मार्ग के माध्यम से यह लड़ाई लड़ी जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। आंदोलन में साहित्य का भी विशेष योगदान रहा, जब भारत में श्रंगार रस की प्रधानता थी, तब राजस्थान में वीर रस की गूंज थी। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजस्थान में आंदोलन का सूत्रपात और उसमें राजस्थान का कितना योगदान रहा।
मुख्य अतिथि एवं दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डॉ योगानंद शास्त्री ने कहा कि भारत पर अनेक लोगों ने आक्रमण किए। औरंगजेब की मत्यु के उपरांत मुगल कमजोर हो गए। राजस्थान मे शिक्षा का प्रचार प्रसार बहुत हुआ। महिला शिक्षा का बीडा आर्य समाज ने उठाया। हम जगत गुरू थे, यह गलत नहीं है। भाषा, भूषण और भोजन यदि हमारा नहीं होगा तो हम पहचाने नहीं जाएंगे। प्रारंभ में संगोष्ठी निदेशक प्रो. नीलम कौशिक ने स्वागत उदभोदन दिया तथा शताब्दी का संघर्ष एवं राजस्थान पर एक डोक्यूमेंटी प्रस्तुत की। आयोजन सचिव डॉ हेमेंद्र चौधरी ने संगोष्ठी में उपस्थित अतिथियों का परिचय देते हुए शताब्दी संघर्ष एवं राजस्थान विषय पर रूपरेखा प्रस्तुत की। प्रो पीके पंजाबी, प्रो टीके माथुर, प्रो एसके भनोत, डॉ ललित पांडे, डॉ फारूख, प्रो जेके ओझा, प्रो गिरिशनाथ माथुर, डॉ हेमशंकर दाधीच, डॉ. मोहब्बत सिंह, डॉ. राजेंद्र पुरोहित, डॉ. हेमेंद्र चौधरी आदि ने भी विचार व्यक्त किए। इस दौरान समानांतर सत्रों में 35 से अधिक शोध पत्रों का भी वाचन हुआ। धन्यवाद गिरिश पुरोहित ने ज्ञापित किया।