तेरापंथ समाज के शुरू हुए पर्युषण, बहेगी धर्म गंगा
उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में शनिवार से पर्वधिराज पर्युषण आरम्भ हुए। पहले दिन खाद्य संयम दिवस पर भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा पर विशेष प्रवचन हुए।
शासन श्री मुनि सुखलाल ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के बारे में कहा कि एक आगम में भगवान महावीर की स्तुति की गई है। निर्वाण यानी जीवनमुक्त होना है। पर्युषण पर इतनी संख्या में उपस्थिति मन को आल्हादित करती है। महावीर अंतिम तीर्थंकर थे। भगवान ऋषभ, नेमिनाथ का वर्णन मिलता है। साहित्य में इसे प्रतिबिम्बित भी किया है। जो हमारे समझ में न आये वो अनंत है लेकिन आज विज्ञान ने भी स्वीकार किया है। भगवती सूत्र में भी अनंत के भेद बताए हैं। सुई के अग्रिम भाग में जितना स्थान है, उसमें अनंत जीव राह सकते हैं। भगवान महावीर भी अनंत काल से जीव जगत में भ्रमण करते रहे हैं। उन्होंने जैन धर्म का उपदेश दिया। महावीर ने दो बातों का विश्लेषण किया। कर्म मार्ग का सबसे सूक्ष्म विश्लेषण जैन धर्म में किया गया है। ईश्वर ही व्यक्ति को बनाता है तो किसी को सुख और किसी को दुख क्यों? ये सब कर्मों का फल है जो भुगतना पड़ता है।
मुनि मोहजीत कुमार ने कहा कि वर्ष भर में नवांहिक कार्यक्रम एक बार मन वचन काया की शुद्धि के लिए आता है। पूज्य प्रवर आचार्य श्री महाश्रमण की सन्निधि में कोलकाता में मनाया जा रहा है। ये आठ दिन हमें प्रेरणा, सामर्थ्य, संबल देते हैं कि आत्मा को आत्मा से देखने का प्रयास करें। इसमें अतीत और भविष्य दोनों ही आ जाएंगे। आठ दिन का क्यों मनाया जाता है। पहले एक दिन ही पर्युषण होता था। आचार्यों की दूरदृष्टि ने ऐसा उपक्रम दिया कि आत्मा से आत्मा का मिलन हो, जुड़ाव हो। जैन दर्शन में 8 कर्मों का उल्लेख है। इनका राजा मोह जिस पर जीत प्राप्त करनी है। अष्ट कर्मों के साथ अष्ट सिद्धि, अष्ट मंगल, अट्ठम, तैले का प्रवचन तप, देवतागण आठ दिन का उत्सव मनाते हैं लेकिन ये अष्ट दिवसीय तप जप का रहता है। आठ दिन तक आत्मराधना के लिए है। आज बरस के साथ तेरस भी है जो आचार्य जयाचार्य का परिनिर्वाण दिवस भी है। इतना सुंदर योग बहुत कम मिलता है। एक बार में कम से कम द्रव्य लें। एकासन करें। दो बार भी खाए तो 9 से अधिक द्रव्य न लें। शाम को प्रतिक्रमण अवश्य करें। रात्रि भोजन का विशेष रूप से प्रतिहार करें। खाद्य के संयम के साथ स्वाद पर नियंत्रण रहे। सम्यक दर्शन का विकास करें। सकारात्मकता के साथ विचार करें। मुनि भव्य कुमार ने भी विचार व्यक्त किये। मुनि जयेश कुमार ने आचार्य जयाचार्य के 136वें परिनिर्वाण दिवस पर गीत जय जयाचार्य …. प्रस्तुत किया।