तेरापंथ समाज : दूसरे दिन मनाया स्वाध्याय दिवस
उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में शनिवार से पर्वधिराज पर्युषण आरम्भ हुए। दूसरे दिन स्वाध्याय दिवस तथा भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा पर शासन श्री मुनि सुखलाल ने प्रस्तुति दी। पर्युषण के दूसरे दिन पूरा भवन खचाखच भरा था। श्रावक-श्राविकाओं को बैठने की जगह तक नहीं मिल पाई जिससे बाहर बैठे श्रावकों के लिए लाइव टेलिकास्ट किया गया।
शासन श्री मुनि सुखलाल ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा में पूर्व भवों के बारे में कहा कि साधुओं के पवित्र आभा मंडल को देखकर ग्रामीण का मन सोचने पर मजूबर हुआ कि जंगल में इन्हें खाने को कहां मिलेगा। यह सोचकर ही उसमें जो थिरकन आई उसका वो बयान नही कर सका। उसने साधुओं से कहा कि आपकी विधि तो मैं नही जानता लेकिन जो मेरे पास यह थोड़ा बहुत है, इसे स्वीकारने का कष्ट करें। शुद्ध आहार, शुद्ध स्थिति देखकर उन्होंने आहार स्वीकार कर लिया। उन्होंने आहार लेकर ग्रामीण से पूछा कि कोई धर्म ध्यान करते हो। तब उसने कहा कि यहां कोई साधु संत नही आता लेकिन आपका आभा मंडल देखकर मेरा मन, चित्त बदल गया। संतों के दर्शन से क्या फायदा? लेकिन मन की भावना हो जैसे ग्रामीण की थी, उसी प्रकार सम्यक दृष्टि हुई। भगवान ऋषभ के पुत्र भरत जिनके नाम से देश का नाम पड़ा। भरत ने पुत्र का नाम मरीचि रखा। भगवान ऋषभ साधुचर्या की तपस्या कर रहे थे। भगवान ऋषभ का अयोध्या में आगमन हुआ। उपवन में उनके समवशरण की रचना की गई। भरत को खुशी थीकि उनके पिताजी तीर्थंकर के रूप में पधारे हैं। वे भी प्रवचन सुनने पहुंचे। अच्छा लगा तो उसने पूछा कि महाराज आपके समवशरण में जो भी बैठे हैं, उनमें ऐसा कोई जीव है जो तीर्थंकर बने। भगवान ने कहा कि मरीचि ने दीक्षा तो ली थी। उनके साथ 4000 लोगों ने दीक्षा ली। वे इधर उधर भटक रहे थे। मरीचि भी साधना को समझ नही पाया। यह आगे जाकर महावीर का जन्म लेगा। वासुदेव, चक्रवर्ती और तीर्थंकर। भरत ने मरीचि को कहा कि अभी साधु बने हुए हो लेकिन तुम्हारा भविष्य बड़ा उज्ज्वल है। मरीचि ने कहा कि मेरे दादा पहले तीर्थंकर, पिता पहले चक्रवर्ती। अपने कुल का अहंकार मरीचि को हो गया। उसने नीच कुल गौत्र का बंधन कर लिया। अहंकार के साथ साधना करते हुए बड़ा हुआ और बीमारी भी हो गयी। उसने कपिल नाम के व्यक्ति को दीक्षा दी।
मुनि मोहजीत कुमार ने कहा कि ज्ञान की चेतना को जगाने का दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में मनाया जाता है। जितना ज्ञान होगा, उतनी प्रज्ञा होगी। स्वाध्याय के साथ यदि व्यक्ति का चित्त और मन लग जाये तो निर्जरा का इससे सरल साधन और कुछ हो नही सकता। भले ही नवकार मंत्र का जप हो या ईष्ट की आराधना हो इनका अंतिम प्रकार धर्मकथा। यह सुनना भी एक प्रकार का स्वाध्याय है। यह एक ऐसा सत्व है जिसे पीकर अपने भवों से पार पा सकते हैं। एकाग्रचित्त होकर यदि धर्मवाणी सुनेंगे तो गति बदल सकती है। स्वाध्याय बहुत बड़ा योग है। सोते समय लोगस्स का पाठ करें। हम कषायों पर विजय प्राप्त कर सकें, भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा दत्तचित्त होकर सुनें।
मुनि भव्य कुमार ने बताया कि चातुर्मास आरम्भ से मुनि मोहजीत कुमार के निर्देशन में स्वाध्याय श्रावक प्रतिक्रमण स्पर्धा के रूप में चल रहा है।
बाल मुनि जयेश कुमार ने स्वाध्याय पर सुंदर प्रस्तुति देते हुए कहा कि जो सब शास्त्रों को मर्यादापूर्वक पड़ता है, उसे स्वाध्याय कहते हैं। जिससे जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है, उसे स्वाध्याय कहा जाता है। शिष्य के पूछने पर भगवान महावीर ने कहा कि स्वाध्याय से जीव ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करता है। चित्त को स्थिर रखने के लिए स्वाध्याय बहुत काम आता है। स्वाध्याय कितने प्रकार का होता है। पांच प्रकार के स्वाध्याय में वाचना (पढ़ना), पूछना, पुनरावर्तन, अनुप्रेक्षा तथा धर्मकथा (प्रवचन) शामिल हैं। अपने आपको जानना यानी स्वाध्याय का सीधा अर्थ है। स्वाध्याय चंदन के समान है जो हमें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इससे हम संसार सागर से पर पा सकते हैं। हमेशा स्वाध्याय की आदत डालनी चाहिए। उन्होंने जीवन को बदलना हो तो स्वाध्याय करने पर एक गीत की भी प्रस्तुति दी।