उदयपुर। सोसायटी फॉर माइक्रोवाइटा रिसर्च एंड इंटीग्रेटेड मेडिसिन (स्मरिम), उदयपुर द्वारा रविवार 6 जनवरी को भिंडर के निकटवर्ती सालेड़ा में जैविक खेती पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम आयोजक सोसाइटी सचिव डॉ. वर्तिका जैन ने बताया की कार्यशाला का शुभारम्भ जर्मनी से पधारे मुख्य वक्तागण श्रीमती सरिता बार्बर तथा फ्रेंक बार्बर द्वारा द्वारा माइक्रोवाइटा सिद्धांत के प्रवर्तक श्री पी. आर. सरकार की प्रतिकृति पर माल्यार्पण के साथ हुआ. तत्पश्चात भिंडर में सोसायटी सदस्य श्री ललित प्रजापत ने पुष्पहार द्वारा अतिथियों का स्वागत किया।
विगत बीस वर्षों से जर्मनी में जैविक खेती कर रही मुख्य वक्ता श्रीमती सरिता बार्बर ने कृषकों और अन्य श्रोतागण को सम्बोधित करते हुए बताया की वर्तमान युग की कई समस्याओं का समाधान रसायन-मुक्त जैविक खेती है. भारत के पंजाब का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा की रसायनों के अत्यधिक प्रयोग के कारण एक कृषि संपन्न राज्य की दुर्दशा और कैंसर रोगियों की अधिकता किसी से छिपी नहीं है. रसायनयुक्त जहरीला अन्न खाने से कैंसर, डाइबिटीस, मोतियाबिंद, हृदय-रोग के साथ ही कई मानसिक व्याधियों का जन्म भी होता है. उन्होंने कहा की जैविक खेती से उपजे सात्विक अन्न को खाने से शरीर और मन की कई व्याधियों से बच जाते हैं और एक सात्विक वातावरण के निर्माण से मनुष्य अपने परम लक्ष्य अर्थात अध्यात्म जगत की और तीव्रता से आगे बढ़ सकते हैं।
फ्रेंक बार्बर ने कहा की खेती में अच्छी उपज के लिए निरंतर रसायनों के प्रयोग से मिट्टी की प्राकृतिक उर्वर शक्ति का ह्रास हो गया है और मीलों भूमि बंजर होती जा रही है. भारत में रासायनिक खाद के इन दुष्प्रभावों के कारण अंततः फसलें नष्ट हो रही है और किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. उन्होंने कहा की इन सबसे बचने का एक ही उपाय है जैविक खाद और जैविक कृषि की तकनीकों को अपनाना जिससे जमीन की उर्वर शक्ति भी नष्ट नहीं होती, साथ ही कृषि को भी उद्योग का दर्जा मिलना जिससे किसानों को उनकी मेहनत का पूर्ण लाभ मिल सके.
सोसायटी सचिव डॉ. वर्तिका जैन ने बताया की रासायनिक खाद के उद्योगों को सब्सिडी प्रदान की जाती हैं परन्तु अभी भी जैविक खाद उत्पादन को लेकर देश में जागरूकता और प्रोत्साहन की कमी है और प्रतिदिन मानव शरीर को विभिन्न प्रकार के रसायनों को अपने में समाहित करना होता है जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं।
स्थानीय कृषक जगदीश ने कहा की भारत एक कृषि प्रधान देश है और इस कृषि भूमि का पर्याप्त सदुपयोग कर हम अपनी ही नहीं अन्य कई देशों की खाद्य समस्यायों को भी सुलझा सकते है।
जर्मनी से पधारे और भारत के विभिन्न प्रांतों में विगत एक माह से जैविक खेती की अलख जगा रहे मुख्य वक्ताओं बार्बर युगल को सोसाइटी द्वारा ‘बुलेटिन ओन माइक्रोवाइटा रिसर्च एंड इंटीग्रेटेड मेडिसिन’ और उपहार देकर सम्मानित किया गया. अंत में वक्ताओं द्वारा विभिन्न श्रोताओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों और जिज्ञासाओं का समाधान किया गया. श्री इंदर सिंह राठौर ने वक्ताओं तथा प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम में उदयपुर, भिंडर, कानोर, खेताखेड़ा, कुंथवास, राजसमंद से आये कृषकों और अन्य बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।