उदयपुर। शिशु मृत्यु दर में कमी लाने एंव मातृ-शिशुओं को विभिन्न बीमारियों से बचाव के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने मिलेनियम डवलपमेन्ट गोल के तहत वर्ष 2020 तक विश्व के 90 प्रतिशत बच्चों के टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा है। अब तक यह आकड़ा 75 प्रतिशत तक ही पंहुच पाया है।
उक्त बात रोटरी क्लब उदयपुर द्वारा मातृ एंव शिशु स्वास्थ्य दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में उभर कर सामनें आयी। महाराणा भूपाल सार्वजनिक चिकित्सालय के बाल रोग विशेषज्ञ प्रो. डॉ. विवेक अरोड़ा ने संगोष्ठी में भाग लेते हुए बताया कि अब बच्चों को डीबीटी के स्थान पर पेन्टावाईलेट नामक टीका लगाकर उसे पंाच बीमारियों से बचाया जा सकता है। बच्चों को हर हालत में टीके लगाये जाने चाहिये। अब बाजार में टाईफाईड से बचाव के लिए जीवन में मात्र एक बार लगाया जाने वाला टीका उपलब्ध है जबकि इससे पूर्व अब तक हर वर्ष टीका लगाया जाता रहा है। पोलियों से बचाव के लिए विदेशों की तरह ही भारत में भी इन्जेक्टेबल पोलियों वेक्सिन उपलब्ध है।
गीतांजलि मेडीकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.देवेन्द्र सरीन ने बताया कि मां की बीमारी का असर शिशु के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। अत: शिशु को हर बीमारी से बचाव के लिए विभिन्न प्रकार की बीमारियों रोटावायरस, स्वाईन फ्ल्यू, चिकन पॉक्स, रेबीज़ जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव के लिए टीके लगा कर उपलब्ध है। चिकन पॉक्स की टीका जीवन में एक बार लगाने पर वह 80-90 प्रतिशत तक यह बीमारी कभी नहीं होती है और कभी हो भी गई तो वह जटिलता लिये नहीं होती है। जीवन में एक बार रेबीज का टीका अवश्य लगाया जाने चाहिये। यदि रेबीज हो जाए तो उससे बचाव असंभव हो जाता है। बाजार में अब इन्द्रधनुष नामक टीका उपलब्ध है जो सात बीमारियों से बचाता है।
गीताजंलि मेडीकल कॉलेज के स्त्री रोग विभाग के विभागाध्यक्ष स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.अरूण गुप्ता ने बताया कि नि:संतानता के पीछे पति-पत्नी दोनों जिम्मेदार होते है इसलिए सिर्फ महिला को दोषी ठहराया जाना उचित नहीं है। नि:संतानता में 40 प्रतिशत पुरूष, 30 प्रतिशत महिलाएं, 10 प्रतिशत दोनों तथा 20 प्रतिशत कारण जिम्मेदार होते है। समाज को नि:संतानता के लिए दम्पत्तियों को जागरूक करना चाहिये। महिला के व्हाईट डिस्चार्ज होना एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन अधिक मात्रा में होने पर तथा उसमें बदबू आने पर चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिये अन्यथा वह किसी गंभीर बीमारी का लक्षण भी हो सकता है।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.लता मेहता ने बताया कि 14 वर्ष से पूर्व बालिकाओं में मासिक धर्म की शुरूआत होना प्री-मेच्योर मासिक धर्म कहलाता है जो आगे जाकर हड्डियों को कमजोर करता है। इस अवसर पर उन्होंने मीनोपोज के विभिन्न कारण बतायें।
क्लब अध्यक्ष डॉ. बी.एल.सिरोया ने बताया कि क्लब नियमित रूप से टीकाकरण के लिए एक केन्द्र खोलने पर विचार कर रहा है ताकि मातृ एवं शिशुओं को लाभान्वित किया जा सकें। अंत में सचिव डॉ.नरेन्द्र कुमार धींग ने आभार ज्ञापित किया।