व्यंग्य-विनोद, हंसी-ठिठौली का एकमात्र मनमौजी त्यौहार राजस्थान के दक्षिणांचल वागड़ में जितना धूमधाम से मनाया जाता है उतना शायद ही किसी अन्य पर्व को , जिसका मुख्य कारण बड़ी तादाद में इस पर्व पर संपादित की जाने वाली अनोखी व रोचक परंपराएं ही हैं। इन परंपराओं में जहां होली पर्व की अल्हड़ मस्ती के साथ आनंदाभिव्यक्ति है तो उसके पीछे सामाजिक एकता एवं सांप्रदायिक सौहार्द का अनूठा संदेश भी छिपा हुआ है और यही कारण है कि आज भी ये खेल परंपराएं उसी मूल रूप में संपादित की जा रही हैं।
संगठन बनाम शक्तिप्रदर्शन का खेल : गढ़ भेदन
अंचल के अधिकांश गांवों में संगठन बनाम शक्तिप्रदर्शन का एक रोचक खेल हैं जिसे स्थानीय बोली में गढ़-भांगना (गढ़ या किला तोडऩा) कहा जाता हैं। गढ़ राजपूतकालीन किलों को कहा जाता है परंतु यह गढ़ 100 से 200 व्यक्तियों के गोल घेरे में पास-पास खड़े होकर बनाया जाता है। इस मानवीय गढ़ को दो अथवा तीन व्यक्तियों के कुछ समूह शत्रु बनकर विभिन्न दिशाओं में अलग-अलग आक्रमण कर तोड़ऩे की कोशिश करते हैं। इस दौरान घेरे के बाहरी भाग में कुछ व्यक्ति धोती को लपेट कर बनाए गए विशेष चाबुकनुमा गोटे के वार से विरोधियों के आक्रमण को निष्प्रभावी करते हैं व अपने गढ़ की रक्षा करते हैं। विरोधी पक्ष के समूह यदि घेरे को तोडक़र आरपार निकलने में समर्थ हो जाता है तो गढ़ को टूटा हुआ समझा जाता है परंतु ऐसा यदाकदा ही होता है। यदि गढ़ नहीं टूटता है तो एक निश्चित अवधि के पश्चात दोनों पक्षों के लोग डांडिये खेलते हुए गढ़ न टूटने की खुशी की सामूहिक अभिव्यक्ति करते हैं। अंचल के कई गावों में इस खेल का आयोजन कहीं होली, कहीं द्वितीया तो कहीं रंगपंचमी को किया जाता है।
शौर्य प्रदर्शन का माध्यम : फूंथरा पंरपरा
डूंगरपुर जिलातर्गत सागवाड़ा परिक्षेत्र के ओबरी गांव में रंगपंचमी पर होने वाली फूंथरा उतारने की परंपरा क्षेत्र का अनोखा आयोजन हैं। इस पंरपरा में गांव के मुख्य चौराहे के निकट खेतों मंव खजूर के एक ऊंचे वृक्ष पर सफेद रंग का वस्त्र जिसे फूंथरा कहा जाता हैं, बांधा जाता है जिसे स्थानीय युवाओं द्वारा संघर्षपूर्ण तरीके से उतारा जाता है।
इस पारंपरिक आयोजन में युवा दो दलों में विभक्त हो जाते है। हजारों लोगों की मौजूदगी में युवाओं का एक दल इस खजूर पर चढक़र फूंथरा उतारने का प्रयत्न करता है जबकि दूसरा दल प्रथम दल के सदस्यों को नीचे की ओर खींचते हुए उनके प्रयास को असफल बनाने की कोशिश करता है। करीब घंटे भर की जद्दोजहद के बाद कोई बिरला व साहसी व्यक्ति इस फूंथरे को उतारने में कामयाब होता है तो गांव के पंचों की उपस्थिति में उस साहसी व्यक्ति का अभिनंदन किया जाता है। फूंथरा पंचमी के इस आयोजन दौरान आसपास के बीसियों गांवों के हजारों लोग एकत्र होते है और इस आयेाजन का आनंद उठाते हैं और अप्रत्यक्ष रूप में संदेश आत्मसात करते है कि संगठन में ही शक्ति है व सामाजिक एकता से ही विजय हासिल होती है।
भावना शर्मा