भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय से संबद्व वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्द्याटन पेसिफिक विश्वविद्यालय में आयोजित हुआ। मुख्य अतिथि उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय, पाटन के पूर्व कुलपति प्रो. जे. जे वोरा ने विज्ञान एवं तकनीकी विषयों के शिक्षण मे हिन्दी शब्दावली के उपयोग को राष्ट्रीय दायित्व बताया।
विशिष्ट अतिथि मर्सी हमार सहायक निदेशक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली ने आयोग द्वारा विज्ञान विषयों में हिन्दी भाषा के प्रयोग हेतु किए जा रहे विभिन्न कार्यों का विस्तार से उल्लेख किया। इस संगोष्ठी मे विभिन्न स्थानों से नब्बे प्रतिभागियों ने भाग लिया जिनमें शोधार्थी छात्र एवं महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयो के आचार्य सम्मिलित रहे। इस अवसर पर पेसिफिक विश्वविद्यालय मे स्नाकोतर अध्ययन के अधिष्ठाता प्रो. हेमन्त कोठारी ने विश्वविद्यालय मे किए जा रहे अनुसंधानों पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी के संयोजक प्रख्यात रसायनविद् प्रो. सुरेश आमेटा ने संगोष्ठी का परिचय प्रस्तुत करते हुए हिन्दी भाषा में विज्ञान शिक्षण की आवश्यकता को रेखाकिंत किया। विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता डॉ. रामेश्वर आमेटा ने विज्ञान शिक्षण मे हिन्दी भाषा के महत्व को प्रतिपादित किया। उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष पेसिफिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कृष्णकान्त दवे ने संगोष्ठी के सफल आयोजन हेतु बधाई दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सीमा कोठारी ने किया तथा विज्ञान संकाय के अध्यक्ष डॉ दिलेन्द्र हिरण ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उद्घाटन सत्र के पश्चात् रसायन विज्ञान के विशेषज्ञों ने आमंत्रित व्याख्यान प्रस्तुत किए। जिनमें जोधपुर से प्रो. प्रदीप कुमार शर्मा ने विज्ञान शिक्षा में हिन्दी भाषा के प्रयोग की समस्याएं एवं संभावनाओं पर विचार व्यक्त किए तथा गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रो. आर. डी. कौशिक ने दैनिक जीवन मे ऊष्मा गतिकी की भूमिका को स्पष्ट किया। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से प्रो. उमा शर्मा ने विशाल अणुकणिका रसायनशास्त्र (सुप्रामॉलिक्यूलर केमेस्ट्री) पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। पेसिफिक विश्वविद्यालय के प्रो. रक्षित आमेटा ने सममिति विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। सुखाड़िया विश्वविद्यालय की डॉ. चेतना आमेटा ने विषमचक्रीय यौगिकों की विस्तृत व्याख्या की। इस संगोष्ठी के माध्यम से विज्ञान के विषयों को सरल हिन्दी भाषा में अभिव्यक्त करने की प्रेरणा प्राप्त होगी तथा विज्ञान का सामाजिक सरोकार विस्तीर्ण होगा।