राजनीतिक पार्टियों की हलचल खत्म़ नहीं होती। एक ओर कांग्रेस में गहलोत-जोशी के रिश्तों को लेकर चर्चाएं होती है वहीं भाजपा मेवाड़ के शेर के नाम से पहचाने जाने वाले कटारिया के कारण प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर तक भाजपा चर्चा में रहती है।
फिलहाल भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया अपनी लोक जागरण यात्रा को लेकर संभाग भर के दौरे कर रहे हैं। जहां उन्हें चहुंओर घोर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। शुक्रवार को राजसमंद में जहां कटारिया को यात्रा का कड़ा विरोध झेलना पड़ा वहीं शनिवार को उन्हें बांसवाड़ा में भी कडे़ विरोध का सामना करना पड़ा। मेवाड़ का शेर कहलाने वाले कटारिया के सामने अब यह यात्रा प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। इसी को लेकर वे हाईकमान के बुलावे पर शनिवार शाम नई दिल्ली के लिए रवाना हुए।
उधर उनके विरोधियों का मानना है कि न तो स्थानीय स्तकर से यात्रा को लेकर कोई प्रस्ताव प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर पर गया। फिर कटारिया स्वीयं कैसे अपने स्तर पर यात्रा निकालने का निर्णय कर सकते हैं। चर्चा यह भी है कि राज्यप विधानसभा चुनाव में हालांकि अभी डेढ़ वर्ष बाकी है लेकिन कटारिया को अपने अस्तित्व के संकट का आभास होने लगा है।
बताया गया कि राजसमंद में विधायक किरण माहेश्वरी के साथ खासी गाली-गलौज भी की गई थी, इसीलिए वे रो भी पड़ीं। मेवाड़ के छह में से दो जिलों उदयपुर और राजसमंद में कटारिया समर्थक संगठन हैं बाकी चार जिलों में कटारिया विरोधी संगठन में पदाधिकारी हैं। उदयपुर में जिलाध्यक्ष दिनेश भट्ट एवं राजसमंद में नंदलाल सिंघवी को कटारिया का धुर समर्थक माना जाता है जबकि प्रतापगढ़ में नंदराज शर्मा, चित्तौघड़गढ़ में सी. पी. जोशी, बांसवाड़ा में भगवत पुरी गोस्वािमी तथा डूंगरपुर में गजेन्द्र सिंह कटारिया के विरोधी माने जाते हैं। छह जिलों में से दो जिलों के बूते पर क्यां कटारिया को मेवाड़ का शेर माना जा सकता है? यह अहम प्रश्न अब मतदाताओं और भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ खुद कटारिया के मन में भी घूम रहा है। यही कारण है कि कटारिया यात्रा निकालने को लेकर कटिबद्ध हैं।
मेवाड़ के अन्य नेताओं में धर्मनारायण जोशी, किसान मोर्चा के प्रदेश पदाधिकारी व पूर्व विधायक रणधीरसिंह भीण्डनर, राजसमंद विधायक किरण माहेश्वारी, बांसवाड़ा के पूर्व सांसद धनसिंह रावत आदि सभी ध्रुव एक हो गए हैं और कटारिया को अकेले इन सबसे लोहा लेना है। कटारिया समर्थकों में पूर्व सभापति युधिष्ठिर कुमावत हों या पारस सिंघवी या फिर मांगीलाल जोशी, ये कभी न कभी कटारिया के विरोधी रह चुके हैं।
फिलहाल कटारिया नई दिल्ली गए हैं। वहां क्या वे हाईकमान से समझाईश कर यात्रा की स्वीकृति लेकर आते हैं या यात्रा रद्द करने के आदेश लेकर? लेकिन यात्रा अब न सिर्फ कटारिया बल्कि उनके विरोधियों के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है। विरोधियों का यह मात्र शगूफा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि उनका मानना है कि यात्रा को लेकर अगर पार्टी का आदेश हुआ तो काम तो करेंगे ही।
jinki niev mjbuti se rakhi ho wo garh u nahi daha karte
asan hai kuch bhi kah dena,vasundhra ji ke gale ki faanse bane gulab ji/akhir kyon?
gulab ji ne to phir ek baar sacrifice hi kiya sangthan ka vightan na ho isliye
lekin???????????????
hua kya