मोहनदास कर्मचंद गांधी… हमारे लिए एक बहुत ही सम्माननीय नाम, आज जिनकी जयंती पूरा देश मना रहा है लेकिन क्या हम वाकई गांधी जयंती मनाने के काबिल रह गए हैं? इस पर गंभीरता से विचार करना होगा. सिर्फ उनकी प्रतिमा पर फूल मालाएं चढाने, उनके सम्मान में किसी सभा को संबोधित कर देने या उनके नाम से बड़ी-बड़ी सरकारी योजनाएं शुरू कर देने से क्या हम उन्हें तथा उनके विचारों को जिन्दा रख पाएंगे? लेकिन फिर भी अब तक तो सरकारें यही करती आई हैं. आज अगर गांधीजी होते तो अपनी बेबसी पर आंसू बहाने के सिवाय उनके पास और कोई चारा नहीं होता.
ऐसे देश की कल्पना तो उन्होंने कभी नहीं की होगी जहाँ आजादी के ६४ वर्ष बाद आना हजारे को भ्रष्टाचार मिटने के लिए अनशन और राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन करना पड़ा. श्री हजारे के इस आंदोलन से गहरी पैठ तक जड़ें जमा चुकी भ्रष्टाचार की नीवों को चेतना जागृत करनी पड़ी. इस समय फिल्म घातक का एक सीन जरूर याद आता है जब फिल्म में अभिनेता चिकित्सालय में जाता है और अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता को भर्ती कराने के लिए पिता को मिला हुआ ताम्र-पत्र दिखाते हुए कहता है कि उसके पिता ने गांधीजी के साथ काम किया और देश को आजादी दिलाई थी. इस पर चिकित्सालय के कर्मचारी का जवाब होता है कि अरे तो क्यूँ दिलाई थी आजादी. किसने कहा था? आज के इस जमाने से तो हम गुलाम ही अच्छे थे?
हालांकि बात हास्यास्पद थी और मनोरंजन की दृष्टि से कही गई थी लेकिन उक्त बात हमारे अंदर की आत्मा को कहीं-ना-कहीं कचोटने वाली थी. उक्त बात मन में गहरा असर कर गई. क्या गांधीजी ने वाकई गलती कर दी थी. जिस देश में भ्रष्टाचार का इतना बोलबाला हो, एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं. लगने लगा है कि कोई तो ऐसा विभाग बचा होगा अथवा नहीं जिसमें कोई घोटाला नहीं होगा?
साथ ही अगर गुदड़ी के लाल लाल बहादुर शास्त्री को याद ना करें तो यह हमारी मानसिकता और नैतिक मूल्यों की बेमानी होगी. शास्त्री जी ने देश के जवानों और किसानों को सर्वोपरि मानते हुए ही नारा दिया था कि जय जवान-जय किसान. कहाँ हैं वो मूल्य, जिसके लिए उन्होंने हमें आजादी दिलाई थी. अन्ना हजारे भी अब ट्विट्टर और फेसबुक पर ब्लॉगिंग करेंगे. जमाने ने उन्हें भी समय के साथ चलना सिखा दिया है. आंदोलन में उनके साथ रहे युवा कवि की स्थिति भी अब यह हो गई है कि उन्हें फोन करें तो उनके निजी सचिव महोदय उठाते हैं. इतने बरसों तक तो कभी निजी सचिव की जरुरत नहीं पड़ी थी लेकिन अब क्या हो गया?
आज के दिन अगर गांधीजी और शास्त्रीजी को हमें वास्तव में श्रद्धांजलि देनी है तो उनके आदर्शों और मूल्यों को अपनाकर ही की जा सकती है. अन्ना के आंदोलन के समय जब युवा जाग गया था तो लगा कि अब भ्रष्टाचार मिट कर ही रहेगा लेकिन सब कुछ ठन्डे बस्ते में! कब आएगा वो समय जब हम गांधीजी को उनके आदर्श अपना कर सच्ची श्रद्धांजलि दे सकेंगे.
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Munna bhai Gandhigiri karta he to hum taliya bajakar seena fula dete he…jab hamari bari aati he hum munnabhai ban jate he….ya phir gandhi chap ka raub dikhane lagte he…sach pooch to system nahi hum khud kamjor he….laato ke bhut ko baton se bhagane ki hamari koshish is ghor kalyog me tabhi rang layegi jab sab dil se sochenge….mera bharat mahan….