समा बाँधा शैलेश लोढा और मुनव्वर राणा ने
उदयपुर. पहले अभावों में खुशियाँ थी लेकिन अब खुशियों में अभाव है.. जैसी छोटी-छोटी फुलझडियों से दर्शकों को लोट-पोट करते हुए जब टीवी अभिनेता और कवि शैलेश लोढा ने समा बाँध दिया. शुक्रवार देर रात समाप्त हुए कवि सम्मेलन में खासी संख्या में दर्शकों की भीड़ मौजूद थी. उन्होंने कहा कि मुझे इस बात का गर्व नहीं कि मैं अभिनेता हूँ या ईश्वर ने मेरे सारे सपने पूरे कर दिये या मैं चाहता था उससे कहीं अधिक समृद्धि मिली. इससे बड़े गर्व की बात मेरे लिए यह है कि मैं राजस्थान का सपूत हूँ. मेरी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा मेवाड़ में हुई. मावली के पास मैं पढ़ा, निम्बाहेडा में पढ़ा फिर मारवाड की ओर कूच किया. वहां से निकलकर इस स्तर पर पहुंचा लेकिन अपने लोगों, अपनी मिट्टी को कभी भूल नहीं पाया, ना ही भूलना चाहता हूँ.
नगर परिषद् द्वारा आयोजित दशहरा-दीपावली मेले के पांचवे दिन आरके मार्बल द्वारा प्रायोजित कवि सम्मेलन में मशहुर शायर मुनव्वर राणा व लोढ़ा को सुनने मानो पूरा शहर ही उमड़ आया था. तारक (शैलेष) से मिलने के लिए बड़े तो बड़े बच्चे भी बेताब हो उठे। कवि सम्मेलन सुनने के लिए उदयपुर शहर वासी पहले से ही अपनी जगह आकर बैठ गए। जहाँ अतुल ज्वाला, श्याम पाराशर ने खूब ठहाके लगवाए वहीं संजय शुक्ल ओर व्याख्या मिश्रा को भी तालियाँ मिली.
उदयपुर के प्रकाश नागौरी ने कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए कविजनों का परिचय कराया। लखनऊ से आई कवियत्री व्याख्या मिश्रा ने मां सरस्वती की वंदना कर कवि सम्मेलन का आगाज किया।
हिंदुस्तान के मशहुर शायर मुनव्वर राणा ने जब मां के रिश्ते को अपने शब्दों के जाल में बांधा तो वहां मौजूद हर इंसान उनमें डूब गया। राणा ने माँ की नई-नई परिभाषा अपनी शायरियों के माध्यम से दी. उन्होंने अपने शायराना अंदाज में कहा कि ‘लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुस्कराती है – मैं उर्दू में गजल गाता हूं हिंदी मुस्कुराती है, उछलते कुदते पोत में बेटा ढूंढती होगी – तभी तो पोते को देखकर दादी मुस्कुराती है, बड़ा गहरा तालुक है सियासत का तबाही से- कोई भी शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है, कोयल बोल या गौरया अच्छा लगता है – अपने गांव में सब कुछ भय्या अच्छा लगता है – तेरे आगे मां भी मौसी लगती है, तेरी गोद में गंगा मैय्या अच्छा लगता है, किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुका आई – मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई, ए अंधेरे देखते ही मुंह तेरा काला हो गया, मां ने आंखे खोली की घर में उजाला हो गया जैसी कई शायनी सुना देर तक समा बांधे रखा।
मंच पर सबसे पहले कवि इंदौर से आए हास्य व व्यंग्य के कवि अतुल ज्वाला ने मंच पर आते ही अपना प्रभाव जमाते हुए कश्मीर हमारा है, कश्मीर हमारा है जब हमारा है तो चिल्लाने की क्या जरूरत…, जैसे हास्य कविताओं से लोगों को गुदगुदाया। खचाखच भरे पांडाल में उन्होंने जब ममता को छोड़ कर वासना के स्तर पर आ गए…, मुंड कटे और रूंड़ लड़े इतिहास हमे बताता है- खुद्दारी से जीता केवल राजस्थान सिखाता है, यहां राणा सा देश भक्त चेतक की स्वामी भक्ती है-घांस की रोटी खाकर भी कममे लडऩे की शक्ति है, हे राष्ट्र सुरक्षित जो भालों की नोको से कहते हैं-इस मिट्टी के कण कण में राणा प्रताप दिखाई देते हैं… का कविता पाठ किया तो पूरा सदन तालियों से गूंज उठा।
उदयपुर के हास्य व्यंग्य के कवि प्रकाश नागौरी ने जब मंच पर कविता पाठ शुरू किया तो श्रोता अपने आप को तालियां बजाने से नहीं रोक पाया। उन्होंने उठापटक से यां तिकडम से या दबाव से मान गई, या तिहाड से थी बहार वो उस पहाड़ को मान गई, देश की जनता बेबस पीएम की लाचारी जान गई, बेहरी संसद मौन अंहिसा की ताकत पहचान गई, इस बार बरसात का बादल बड़ा बेवफा निकला, जलन आंखों में थी पानी नाक से निकला, बाहर से हम एक भले हों पर झगडा अंदरूनी है, राजनीति के खेल में भैया हर मामा शकूनी है, रिश्तों की क्या बात करें, तकदीर ही एक तमाशा है, कृष्णा कब तक चीर बढ़ाए, हर दुर्योधन प्यासा है जैसी एक से एक कविताएं प्रस्तुत की।
कोटा से आए वीररस के कवि संजय शुक्ला ने अपने तीखे तेवर में ‘एक नन्हे से – दीपक ने – फिर सूरज को ललकारा है, बंद करो ये भ्रष्टाचार – गूंज उठा ये नारा है कविता पाठ कर पूरे पांडाल में जोश भर दिया।
मध्यप्रदेश से पाए लगे गांव नीमच से आए श्याम पाराशर मालवी ने हास्य रस में की कविता पाठ करते हुए कहा कि जणी दन अन्ना जी वारो लोकपाल बिल – हो जावेगा पास, घणा की तो गैला म अटक जावेगा श्वास…, या तो केंद्र की सरकार न भगवान-सद्बुद्धि दीदी, जो सोच समझ आपणी-अक्कल न काम लीदी…, अगर रामदेव बाबाजी की-जो बात मान लेती, तो आपणा ई देश म-कतराक न फांसी देती…, अढड तो बिसवा प बिच्छु न-बीघा प हांप, मारड न कतराक न-मारोगा आप… कर लोगों को गुंदगुदाया।
लखनऊ से आई व्याख्या मिश्रा ने शृंगार रस में कविता पाठ करते हुए अूंगूठी से नहीं निभती नगीने छूट जाते हैं, लहर के खेल में अक्सर सफीने छूटे जाते हैं, मोहब्बत है बहुत आसान जब चाहे तो कर लेना, मोहब्बत को निभाने में पसीने छूट जाते हैं…, मछलियों की तड़प देखो न देखो ताल कैसा है, यहां का नीर कैसा है यहां शैवाल कैसा है, तुम अपनी बेकरारी से स्वयं अनुमान कर लेना, हमारे दिल से मत पूछो हमारा हाल कैसा है…, आज की रात हूं आपके साथ मैं, आज मुझ पर कोई गीत लिख दीजिए, मेरी आंखों से आंखें मिलाकर सनम, फिर हृदय में मेरे प्रीत लिख दीजिए… सुना दाद बटोरी।
सांस्कृतिक संध्या में आरके मार्बल के अशोक पाटनी व विमल पाटनी, उद्योगपति व समाजसेवी शब्बीर भाई मुस्तफा, पंजाब नेशनल बैंक के मुख्य प्रबंधक एमएन परमार आदि सम्मानित अतिथि थे।
कियो ये चोट हर बार होती है
कही बेटी कही बहन शरमसार होती है
यू तो मिल जाती है शलामी सर उठाके मुझे
पर वो आजाद वतन पर मेरी हार होती है
एे नेता तूने छोडी न कुदरत
छोडी न बरकत
एसो मे अपने पीस दी गुरबत
भोगो मे तन समरपण
कर चरि>| को अरपण
सचि>| वरणन मे तेरे
मिथया हो गया दरपण
नोटो से वोटो मे हो रही हरकत
ऐ नेता तूने छोडी न कुदरत
छोडी न. बरकत
एसो मे अपने पीस दी गुरबत