रोटरी क्लब हेरिटेज द्वारा आयोजित दस दिवसीय नशामुक्ति शिविर
udaipur. जाने-अनजाने मित्रों की बुरी संगत में कभी कभार किया जाने वाला नशा धीरे-धीरे इनके जीवन में इस कदर घुल गया कि इनका जीवन उसके बगैर अधूरा लगने लगा। ये नशे के जाल में इस कदर फंस गये कि इन्हें बाहर निकलने का रास्ता कहीं नहीं दिखाई दिया। कभी निकलने का साहस किया तो नशे ने अपनी मजबूत पकड़ से इन्हें वापस अपनी ओर खींच लिया।
यह दास्तां है रोटरी क्लब हेरिटेज द्वारा अशोक नगर स्थित सुखसागर पैलेस में लगाए गये दस दिवसीय नशा निवारण शिविर का हिस्सा बने रोगियों की, जिन्होंने अपनी हकीकत बयां की तो रोंगटे खड़े हो गए। आमदनी कम, घर का गुजारा मुश्किल, लेकिन प्रतिदिन नशा करना नहीं छूटा। रोटरी क्लब हेरिटेज ने समाज में व्याप्त इस बुराई को जड़ मूल से नष्ट करने के लिए जोधपुर के अफीम मुक्ति चिकित्सा प्रशिक्षण एंव अनुसंधान ट्रस्ट तथा माणकलाव आश्रम के सहयोग से अपने उद्देश्य को पूरा करने का संकल्प किया और वह संकल्प शिविर समाप्त होने तक निश्चित रूप से पूरा होगा ऐसा क्लब अध्यक्ष अनुभव लाडिय़ा व सचिव दीपक सुखाडिय़ा सहित सभी सदस्यों को पूर्ण विश्वास है। इस शिविर में प्रोजेक्ट इंचार्ज नरेन्द्र सिंह पिपरली सहित 10 चिकित्सकों का विशेष सहयोग रहा।
शराब का सेवन करने वाले 46 वर्षीय युवक रमेश (बदला हुआ नाम) ने बताया कि पिछले 5 वर्षों से वह शराब पीता रहा है। शुरुआत में वह अपनी गलत संगत के कारण कभी-कभी एक क्वार्टर पीता था और जब लत बढऩे लगी तो वह मात्रा दो वर्ष बाद प्रतिदिन आधी बोतल तक पहुंच गई। इस शराब के नशे में वह रोजाना डेढ़ सौ रुपए खर्च कर देता था। मासिक 15 हजार की आमदनी में से 5 हजार रुपए शराब में उड़ जाते थे। घर में पत्नी व दो बच्चे हैं। अब जब बच्ची की शादी की चिंता होने लगी तो नींद उड़ गई और रोटरी हेरिटेज द्वारा आयोजित इस शिविर में भाग लिया और पिछले सात दिनों से काफी राहत महसूस कर रहा है और उसे विश्वास है कि वह अब इस नशे को बाय-बाय कर देगा।
निकटवर्ती गांव के 45 वर्षीय कन्हैयालाल (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वे दस वर्ष की उम्र में एक चाय की होटल पर काम करते थे। वहां आने वाले ट्रक ड्राइवरों के संपर्क में आये। ड्राइवरों द्वारा ली जाने वाली अफीम से वे जुड़े। शुरुआत में मक्की के दाने के बराबर शुद्ध अफीम लेते थे। बाद में यह महंगी पडऩे लगी तो इससे नाता तोड़ डोडा-चूरा से जुड़ गए। वर्तमान में ये 4-5 किलो डोडा-चूरा लेते हैं जो लगभग 3 हजार रुपए का पड़ता है। आमदनी भी इतनी ही है। घर में 5 बच्चे हैं। लालन-पालन में मुश्किल आती है। धुन के पक्के इस प्रौढ़ ने शिविर में आने के बाद संकल्प कर लिया कि इस नशे को अपने जीवन से न केवल दूर कर देंगे बल्कि गांव में विभिन्न प्रकार का नशा करने वाले युवाओं, प्रौढ़ एवं वृद्धों को भी इससे मुक्ति दिलाने का प्रयास करेंगे।
शरीर में हाथ-पैर, सिरदर्द, पेट दर्द के लिए काम में ली जाने वाली एक दवा को नशे के रूप में लिया जाने लगेगा। यह 27 वर्षीय शशांक (बदला हुआ नाम) को भी मालूम नहीं था। लगभग दो वर्ष पूर्व जब भी पेट में दर्द हुआ तो इस दवा को ले लिया। उससे राहत महसूस हुई। शुरुआत में एक-दो कैप्सूल लेने से हुई और यह मात्रा धीरे-धीरे बढ़ती-बढ़ती 16-17 कैप्सूल प्रतिदिन कब पहुंच गई, पता ही नहीं चला और नशे के रूप में परिवर्तित हो गई। बीच में एक बार छोडऩे का प्रयास किया लेकिन शरीर में उठे दर्द ने इसे अपनी ओर खींच लिया। आठ माह पूर्व ही शादी हुई और इस नशे के बारे में पत्नी तक को मालूम ही नहीं है, लेकिन अब वे इससे मुक्ति चाहते हैं, इसलिए इस शिविर में आये। शिविर की शुरुआत में पहले दो दिन तक दर्द हुआ लेकिन चिकित्सकों ने कैप्सूल देने के बजाय उसका इस तरह उपचार किया कि अब इन्हें कोई दर्द नहीं होता। अब ये कैप्सूल लेने की प्रवृत्ति को पूर्ण रूप से छोडऩे का प्रण कर चुके हैं। इनकी आमदनी मात्र 5 हजार है और इस तरह खर्च लगभग प्रतिमाह सात-आठ सौ रुपए तक हो जाता है। शिविर में भाग लेकर काफी राहत महसूस कर रहे हैं। निस्संदेह यह शिविर इनके जीवन में भी रोशनी लाएगा।शिविर में अफीम, शराब, स्मैक,गांजा, डोडा-चूरा सहित अनेक नशे के मरीज भती थे।
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