udaipur. उदयपुर में पहली बार महिला क्रिकेट की T-20 लीग क्रिकेट प्रतियोगिता हुई। इसमें बाहर से भी टीमें आई और विजेता वनस्थली रॉयल्स की टीम रहीं। क्रिकेट हुआ, वो भी महिला क्रिकेट और समाप्त भी हो गया लेकिन खास बात यह कि यह आयोजन उदयपुर में कराया किसने? किसकी मेहनत रही इस सबके पीछे। शुक्रवार को टूर्नामेंट समाप्तप होने के बाद जब पता लगाया तो आश्चिर्य चकित करने वाली जानकारी सामने आई कि इस सारे आयोजन के पीछे एक महिला का हाथ रहा। निर्मला शर्मा, जी हां.. मूल झुंझुनूं निवासी निर्मला शर्मा का वैसे धौलपुर में ससुराल है लेकिन कर्म से बॉस्केटबॉल की खिलाड़ी रही निर्मला खुद को रोक नहीं पाई और लड़कियों को आगे लाने के लिए निकल पड़ीं।
उदयपुर न्यूज से बातचीत में निर्मला ने बताया कि आयोजन में डॉ. अजातशत्रु और नंदू श्रीनाथ ट्रेवल्स के घनश्याशम जोशी का बहुत सहयोग रहा। अगर यहां इनका सहयोग नहीं मिलता तो शायद आयोजन संभव नहीं हो पाता। वे बताती हैं कि मैं खुद पहले बॉस्केट बॉल में नेशनल खेल चुकी हूं लेकिन वर्ष 1996 में शादी के बाद मैं गेम्स से दूर रही। धौलपुर, पिछड़ा इलाका होने के कारण भी वहां कुछ कर नहीं पाई। जब बच्चे बडे़ हो गए तो महिलाओं-लड़कियों के लिए कुछ कर गुजरने का माद्दा लिए निकल पड़ी। फिर वर्ष 2007 में झुंझनूं में बास्केट बॉल का ही एक टूर्नामेंट कराया। फिर उसके बाद वर्ष 2009 में चित्तौड़गढ़ के सांवलियाजी में कबड्डी का स्टेट लेवल का टूर्नामेंट कराया।
फिर एक राष्ट्रीय सेमिनार में उदयपुर में मीरां कन्या महाविद्यालय में आने का मौका मिला। यहां मेरे कामकाज को देखकर फिजिकल एज्यूयकेशन के विभागाध्यक्ष और मीरा स्पोर्ट्स एकेडमी के निदेशक डॉ. अक्षय शुक्ला ने एकेडमी संभालने को कहा। अंधे को क्या चाहिए- दो आंखें। मैं लड़कियों के लिए कुछ करना चाहती थीं और डॉ. शुक्ला का यह प्रस्ताव तो मेरे सपने को साकार करने जैसा था। मैंने तुरंत यहां ज्वाकइन कर लिया।
सिर्फ लड़कियों के लिए ही क्यों आगे आई? इसके जवाब में वे कहती हैं कि खेलों में महिलाओं के प्रति सरकार का भेदभाव बड़ा अखरता है। रणजी में खेलकर आई महिला खिलाड़ी को मात्र 2500 रुपए प्रति मैच मिलते हैं जबकि यही अगर लड़का हो तो उसे एक लाख से ऊपर तक राशि मिलती है। भेदभाव काफी है, यह बार-बार कुरेदता है। उनका कहना है कि लड़कियों को खास तौर से जनजाति और ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों को उनके अभिभावकों को आगे भेजना चाहिए। स्वंयंसेवी संस्थाओं, ऐसे संगठनों से भी उनकी अपील है कि अगर ऐसी कोई प्रतिभाशाली लड़कियां आपके आसपास हैं तो उन्हें एकेडमी में भेजें ताकि उनकी प्रतिभा निखर सके। साथ ही अगर गर्ल्स के अलावा बॉयज स्कूल प्रबंधन भी चाहते हैं तो वे कोचिंग दे सकती हैं।
वे मानती हैं कि फिजिकल एज्यूकेशन के प्रति अब भी अभिभावकों में जागरूकता नहीं है। मैंने अपने घर में अब तक टीवी नहीं लिया क्योंकि उसके खाते का समय मैं अपने बच्चों को फिजिकल एज्यूकेशन में देती हूं। वे अब तक करीब एक हजार से अधिक लड़कियों को आगे लाई हैं जिनमें कई तो रणजी खेल चुकी हैं तो कई नेशनल भी जा चुकी हैं।
इन सबके पीछे उनका उद्देश्य ? इस पर वे खिलखिलाते हुए कहती हैं कि पैसे के मामले में ईश्वर की मेहरबानी है। वे कोई भी आयोजन पैसे के लिए नहीं करतीं। हां, आयोजन में होने वाला खर्च निकालने के लिए जिस प्रकार इस बार क्रिकेट T-20 महिला क्रिकेट आयोजन में दानदाता श्री जोशी का सहयोग मिल गया, वैसे ही हर बार भगवान किसी न किसी को भेज देता है।