udaipur. बस कैसे भी करके एक बार पांडाल में पहुंच जाऊं। इधर से-उधर से कैसे भी करके हर कोई अंदर जाना चाह रहा था। मौका था आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर के सान्निध्य में भव्य सत्संग का जो शनिवार शाम बी.एन. कॉलेज प्रांगण में हुआ। हालांकि सत्संग का समय शाम 6 से 8.30 बजे तक का था लेकिन 6.45 बजे गुरुदेव मंच पर पहुंचे। तब तक क्या तो वीआईपी और वीवीआईपी बल्कि प्रेस दीर्घा तक आर्ट ऑफ लिविंग के चहेतों से भर चुकी थी। वीआईपी वाले वीवीआईपी के बॉक्स में आने की चेष्टा कर रहे थे तो संगठन के स्वयंसेवक उन्हें रोक भी रहे थे। गुरुदेव के आने से पूर्व दिल्ली से आईं चित्रा राय एवं बड़ौदा के गौतम ने जो गुरु भक्ति के भजनों की स्वर लहरियां बिखेरनी शुरू कीं कि चहुंओर माहौल भक्तिमय हो गया। गुरुदेव ने मंच पर बनाए गए रैम्प पर जाकर भक्तों पर फूल भी बरसाए.
जैसे ही मेवाड़ी पगड़ी पहने श्री श्री का मंच पर आगमन हुआ, समूचे पांडाल में जय गुरुदेव का नारा लग उठा और लोग उनके दर्शन के लिए खडे़ हो गए। आते ही सांसद रघुवीरसिंह मीणा, नगर परिषद सभापति रजनी डांगी, यूआईटी चेयरमैन रुपकुमार खुराना आदि ने उनका स्वागत किया।
गुरुदेव ने माइक संभालकर कहा कि हर इंसान के कुछ कर्तव्य हैं। उसे समाज में रहने के लिए कुछ अधिकार मिलते हैं तो उसे कर्तव्य भी निभाने पड़ते हैं। अगर आपकी जरूरतें ज्यादा हैं और जिम्मेदारी कम तो दुख अवश्यंभावी है। इसके विपरीत जरूरतें कम हैं और जिम्मेदारियां अधिक हैं तो निश्चेय ही आपसे अधिक सुखी कोई हो नहीं सकता। बस सुखी जीवन का यही रहस्य है।
आज ही एक चिट बना लो जिस पर एक ओर अपनी जरूरतें लिख लो और दूसरी ओर जिम्मेएदारियां लिख लो। बुद्धिमान व्यक्ति देखेगा कि अगर सभी सुखी होंगे तो मैं भी सुखी रहूंगा। जिम्मेदारियां पारिवारिक हो सकती हैं, समाज, देश के लिए भी हो सकती हैं। जितनी अधिक जिम्मेदारी लेंगे, उतनी ही अधिक आपकी ताकत बढे़गी। अगर इच्छाएं अधिक हैं तो प्रयत्न के साथ प्रार्थना करो। सिर्फ प्रयत्न या सिर्फ प्रार्थना करने से कुछ हासिल नहीं होगा। पुरुषार्थ और समर्पण दोनों साथ होने चाहिए।
खुद को पहचानो
अपने अंदर की शक्ति को पहचानो। उसके साथ सम्बन्ध स्थापित करो। जिसके पास पैसा है, वही तो सबको पैसे दे सकता है। निर्धन के पास बैठोगे तो वह तुम्हें पैसे कैसे दे सकेगा? अगर कुंठित के पास बैठोगे तो कुंठा ही आएगी। जो मुक्त है, वह सबको मुक्त कर सकता है। इसके बाद चेहरे पर ऐसी मुस्का न आती है जिसे कोई छीन नहीं सकता। अगर आप प्रसन्न हुए तो प्रसन्नता बांटेंगे। हमारे यहां बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने की परंपरा है। क्योंगकि जो तृप्त हो जाता है उसका आशीर्वाद फलीभूत होता है। तृप्ति से ही तो आशीर्वाद देने की सिद्धि आती है। समाज सिद्धांत से नहीं व्यभक्ति से चलता है। आत्मी यता से व्यवहार करें। आत्मीरयता लाएं। इससे नीरसता मिट जाती है। नीरसता कामनाओं की जननी है।
योग, ध्यान करो
ज्ञान, ध्यान और सेवा करो। योग की अवस्था में जाने से योग्यता बढ़ती है। शरीर मजबूत होता है, व्यवहार अच्छा। बनता है, मन को सुकून मिलता है, बुद्धि तीक्ष्ण होती है और याददाश्त अच्छी, बनती है। उन्होंने कहा कि सतयुग और त्रेता युग के मुकाबले लोग कलयुग को खराब बताते हैं। अरे भाई क्यों , सतयुग में तो नारायण का नाम लेने पर ही राक्षस मार डालते थे, अभी ऐसा तो नहीं है। फिर सतयुग अच्छा कैसे हुआ। कोई काल खराब नहीं। सभी अच्छे हैं। सबका अपना-अपना महत्व है।
सवाल-जवाब
वहां पांडाल में रखे गए छोटे बॉक्से में लोगों ने अपने-अपने प्रश्न और समस्याएं लिखकर डालीं। गुरुदेव ने प्रश्न मंगवाकर पढे़ और एक-एक कर जवाब दिए। भगवान को कौनसा समय देना चाहिए? गुरुदेव का कहना था कि अपना श्रेष्ठ समय दो। ऐसा नहीं कि लाइट नहीं है, कोई काम नहीं हो रहा है तो भजन कर लो। नहीं, प्रतिदिन समय तय कर लो चाहे सुबह या शाम, लेकिन करो जरूर। अपना श्रेष्ठ। समय भगवान को दो। माता-पिता और खुद के कैरियर में से किसको चुनना चाहिए? इस पर श्री श्री ने कहा कि एक बार उनके साथ बात तो कर लो। तुमसे अनुभव में काफी अच्छे हैं। क्या पता उन्होंने तुम्हारे लिए क्या सोच रखा है?
धर्मगुरुओं की संख्या में वृद्धि होने के साथ ही भ्रष्टाचार और अपराध भी बढ़ गए हैं। इस सवाल का जवाब देते हुए श्री श्री ने कहा कि नहीं भाई। गलत है… अगर अस्पताल खुल रहे हैं तो इसका मतलब बीमार होने के लिए अस्पताल जिम्मेदार हैं क्या?
अखिलेश यादव को बधाई
उत्तर प्रदेश में युवा अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने हर्ष व्यक्त करते हुए उन्हें बधाई देते हुए कामना की कि इसी प्रकार युवा आगे आएं। अगर युवा जाग गए तो देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता।
उदयपुर के लिए संदेश उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग का वालंटियर बनने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि देश में 7 लाख गांव हैं। अगर प्रत्येक गांव में दो-दो वालंटियर भेजेंगे तो 14 लाख वालंटियर चाहिए। एक या दो हफ्ते में दो घंटे दो। आध्यात्मिकता की लहर दौड़ जाएगी। खुद सुधरो, फिर समाज और देश की सेवा में लग जाओ।
इस बीच में करीब 17 मिनट का उन्होंने ध्यान प्रयोग भी करवाया। फिर जल्दीऔ आने का वादा भी करते हुए कहा कि जल्दी में भी 7-8 साल लग ही जाते हैं। जब विश्व, भर के लॉयंस और रोटरी क्लब हमारे यहां आ गए तो हमारे देश से बाहर क्या गया? आर्ट ऑफ लिविंग की 152 देशों में शाखाएं हैं।
thanks sunil ji… mei art of living ki puri team ki taraf se sabhi teachers volunteers…sabhi ki taraf se apko bhut bhut dhanyawaad… hum sab aapke aabhaari hai… aap ne guru ji k aagmaan ke pehle se lekar baad tak saari news FB par sbhi shrotaao tak pahuchaayi…aur news bi kya news eek eek word guruji ka aap ne aisa ka aisa likha maano guruji he keh rahe ho…thanks a lot.. 🙂
विद्याजी, हालांकि मैं पहली बार आर्ट ऑफ लिविंग के किसी कार्यक्रम में गया लेकिन सचमुच अभिभूत हूं। मेरे पास अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करने को शब्द नहीं हैं।
धन्यवाद आपका कि आपके कारण मौका मिला हमें भी गुरुदेव की शरण में जाने का।
सतगुरु तुम्हारे प्यार ने….