प्रबन्ध प्रक्रियाओं का सतत् विकास : प्रगति एवं पहलू विषयक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन
उदयपुर। सामाजिक आर्थिक जनकल्याण एवं आने वाली पीढ़ी के विकास हेतु कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पूर्व सतत विकास को ध्यान में रख्ना चाहिए न कि अन्त में जिससे आने वाली समाज के हित को सुरक्षित रख सकें। ये विचार एकेडेमिक स्टाफ कॉलेज काठमांडू (नेपाल) के निदेशक डॉ. दिलीप अधिकारी ने शनिवार को मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के प्रबन्ध अध्ययन संकाय में दो दिवसीय अन्तराष्टीय सम्मेलन के समापन समारोह में व्यक्त किए।
उन्होंने बताया कि किसी भी क्षेत्र में सुव्यवस्थित विकास प्राप्त करने से पूर्व उपयुक्त योजना एवं नीति निर्माण पर कार्य किया जाना चाहिए। विशिष्टक अतिथि पेसिफिक विश्वविद्यालय के प्रो प्रेसीडेन्ट प्रो. बी. पी. शर्मा ने भारत के संदर्भ में बल देते हुए कहा कि सुस्थिर प्रौद्योगिकी के सुस्थिर विकास हेतु सुव्यवस्थित उपभोग को बनाये रखना चाहिए।
अध्यक्षता करते हुए सुविवि कुलपति प्रो. इन्द्रवर्धन त्रिवेदी ने बताया कि भारत अपने आप में एक विशिष्टह एवं विविधता वाला सतरंगी देश है जिसके लिए कोई अन्य देश आदर्श नहीं हो सकता है। उन्होंने छात्र-छात्राओं को विशेष ध्यान देते हुए कहा कि गांधीजी के वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन को साथ में रखकर प्रबन्धन में भी सुस्थिर विकास को सही तरीके से प्राप्त किया जा सकता है। इसी क्रम में उन्होंने पानी को संचित एवं सुरक्षित रखने हेतु पुरानी एवं परम्परागत तकनीक का उदयपुर में बावडी व झीलों का उदाहरण देते हुए बताया जो कि सम्पूर्ण विश्व के लिए सतत विकास का नमूना है।
आयोजन सचिव डा. हनुमान प्रसाद ने दो दिवसीय सम्मेलन का समस्त ब्यौरा देते हुए बताया कि समापन समारोह से पूर्व तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया जो कि मानव संसाधन, सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण 2020 तथा उत्पादन संचालन प्रबन्धन एवं सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित थे। इन तकनीकी सत्रों में कुल 60 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए तथा समस्त पांच सत्रों में प्रस्तुत किए गए शोध पत्रों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।
सम्मेलन के संयोजक प्रो. पी. के. जैन , निदेशक, प्रबन्ध अध्ययन संकाय सुविवि ने सभी आगन्तुक अतिथियों का स्वागत किया।
धन्यवाद देते हुए प्रो. करूणेश सक्सेना ने देश-विदेश से आये अतिथियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। मंच संचालन डा. मीरा माथुर सह-आचार्य ने किया।