जनप्रतिनिधियों का स्वरूप बदला
उदयपुर। दो दशकों में सहनशीलता का अभाव नजर आता है, जिसके परिणाम स्वरूप राजनीति में अधिक उत्तेजना और उग्रता प्रतित होती है। अच्छे प्रजातांत्रिक संचालन के लिये आपसी विमर्श और संवाद आवश्यक है। उक्त विचार डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित ‘भारतीय जनतंत्र के साठ वर्ष’ विषयक संवाद की अध्यक्षता करते हुए राजनीतिक विश्लेषक तथा कोटा ओपन यूनिवरसिटी के निदेशक प्रोफेसर अरूण चतुर्वेदी ने व्यक्ति किये।
प्रोफेसर चतुर्वेदी ने कहा कि वर्तमान संदर्भ में विभिन्न समूह अपने हितों की पूर्ति के लिये लगातार दबाव बनाते है वे यदि प्रजातांत्रिक सीमाओं में है, तब तक उचित है। उग्र एवं हिसंक होते ही वे अपना औचित्य खो देते है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी मुनिष गोयल ने कहा कि भारतीय प्रजातंत्र के आरम्भिक वर्षों में राजनैतिक नेतृत्व तथा प्रशासनिक तंत्र आपस में मिलकर कठिन परिस्थितियों में विकास कार्यों में जुटे हुए थे। पिछले कुछ वर्षों जहां एक तरफ राजनैतिक संवेदनशीलता का अभाव हुआ है, वहीं प्रशासन के ईकबाल में भी कमी आई है। गोयल ने इस बात का भी उल्लेख किया कि पिछले दिनों में प्रजातांत्रिक राजनीति में जो शून्य उपझा उसे मीडिया तथा न्यायपालिका ने अपने सक्रियता से पूरा किया।
राजनीति विज्ञानी की पूर्व आचार्य प्रोफेसर जनब बानू ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना का सविस्तार विश्लेषण करते हुए समाज में व्याप्त सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक विषमताओं को रेखांकित किया। प्रोफेसर बानू ने प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति का भी विश्लेषण किया। लोक शिक्षण संस्थान विद्यापीठ के पूर्व निदेशक सुशील दशोरा ने प्रजातंत्र की मजबूती के लिये चुनाव सुधारों की जरूरत बतलाई। आस्था के अश्विनी पालीवाल ने कहा कि विगत छ: दशकों में भारत ने काफी प्रगति की है, किन्तु ग्राम्य स्वराज की तरफ पहल अभी बाकी हैं प्रकृति केन्द्रीत मानव विकास के एडवोकेट मन्नाराम डांगी ने कहा कि राजनीतिक दलों का कॉर्पोरेट घरानों पर आधारित होना चिन्ताजनक है। मत्य विभाग के पूर्व निदेशक ईश्माईल अली दुर्गा ने कहा कि स्वतंत्रता को स्वच्छन्दता मानने से प्रजातांत्रिक व्यवस्था का नुकसान हुआ है।
संवाद का संचालन करते हुए ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि आजादी के पश्चात् विभिन्नता में एकता से भरे भारत ने प्रजातंत्र की जड़ों को बावजूद विपरीत परिस्थितियों में मजबूती दी है। शर्मा ने कहा कुछ है कि मिटती नहीं है हस्ती हमारी।
संवाद में फातिमा बानू, सोहनलाल तम्बोली, हाजी सरदार मोहम्मद मंसूर अली, बी.एल. कूकडा, नितेश सिंह कच्छावा, वास्तुकार बी.एल. मंत्री, एस.एल. गोदावत ने भी भाग लिया।