यूरोप गये वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति ‘उमंग’ के सदस्यों ने बांटे अपने अनुभव
उदयपुर। अनुशासन के मामले में भारत यूरोप से सैंकड़ो वर्ष पीछे चल रहा है। वहां प्रतिदिन शाम 6 बजे सभी दुकानें बंद हो जाती है। सडक़ों पर पुलिस नजर नहीं आती है। वहां की जनता व अधिकारी देश व उसके कानून के प्रति कर्तव्यनिष्ठ है।
यूरोप की 15 दिन की यात्रा पर गये वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति ‘उमंग’ के 49 सदस्यों के दल के सदस्यों ने वहां से लौटकर आने पर कल योग सेवा समिति के परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम में अपने अनुभव बांटे। दल के सदस्य खेमराज कुमावत ने बताया कि यूरोप में गलती से भी रेडलाईट पार करने पर बिना किसी भेदभाव के सभी को चालान भरना अनिवार्य होता है। कृषि के मामले में भी यूरोप भारत से बहुत आगे है। वहां की एक ही खेत में विभिन्न प्रकार की फसलें उगायी जाती है। वहां सार्वजनिक स्थल पर टॉयलेट करने पर 50 सेंट से लेकर एक यूरो तक जर्माना भरना पड़ता है। बाथरूम के लिये स्थल निर्धारित है जहां नि:शुल्क बाथरूम किया जा सकता है। यात्रा के सहभागी बने सभी बुजुर्ग सदस्यों ने बहुत ही आनन्द पूर्वक इस यात्रा का आनन्द लिया।
रामनिवास मूंदडा़ ने बताया कि यूरोप की भौगोलिक स्थिति भारत से बहुत भिन्न है। वहां का निवासी अपने कार्य में व्यस्त रहता है। वहां के लोग बातें कम और कार्य की क्रियान्विति अधिक करते है। यूरोप की जनसंख्या नियंत्रण में है। हर्ष कुमार ने बताया कि होटल के बाथरूम में लगी रस्सी खींचने पर पुलिस, एम्बुलैंस, फायरबिग्रेड व होटल का स्टॉफ तुरन्त आ जाता है। ऐसी ही घटना दल के एक सदस्य साथ भी घटित हुई। 80 वर्षीय चतरसिंह कावडिय़ा ने भी अपने खट्टे-पीठे अनुभव सुनाये।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सी.ए.प्रकाश हिंगड ने कहा कि जहां सुधार की गुंजाईश होती है वहां सुधार अवश्य किया जाना चाहिये। इस धरा पर एकमात्र परिवर्तन ही स्थायी है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसे कोई बदल नही सकता है। इससे पूर्व वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति के संस्थापक अध्यक्ष डॅा. सुन्दरलाल दक ने सभी सदस्यों से योग एंव प्राणायाम कराया। समिति की ओर से अतिथियों गीताजंलि कॉलेज के निदेशक बी.एल.खमेसरा,पूर्व मुख्य चिकित्सा एंव स्वास्थ्य अधिकारी डॅा.मोतीलाल जैन, दिलीप कुमार वर्मा, पुरूषोत्तम सुखवाल व महेन्द्रसिंह पंवार का माल्यार्पण कर, मेवाड़ी पगड़ी पहनाकर तथा शॅाल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
यूरोप की आलोचना करने वालों को सोचना चाहिए कि विदेशी से कुछ सीखने को मिले तो उसमें कोई बुराई नहीं है