उदयपुर। प्रकृति बहुत ही संवेदनशील हैं। जैसा हम कर्म करेंगे फल वैसा ही मिलेगा, या यूं कह लीजिये कि जैसा हम बोएंगे वैसा ही पाएंगे। इस संसार में सारा खेल कर्मों का ही होता है।
जैसे कोई गरीब है तो कोई अमीर, कोई सुखी है तो कोई दुखी, कोई सुन्दर होता है तो कोई कुरूप, कोई रोगी है तो कोई स्वस्थ और निरोगी, हम मनुष्य जन्म लेकर इस दुनिया में जी रहे हैं तो हमारे साथ जानवर भी इस दुनिया में जी रहे हैं। यह सब कर्मों के उदय का ही फल है। इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्म करना चाहिये ताकि हमें फल भी अच्छे प्राप्त हो।
उक्त उद्गार आचार्य सुकुमालनन्दी ने रविवार को श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर सेक्टर 11 में आयोजित चातुर्मास के दौरान प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये। आचार्यश्री ने कहा कि पुण्य करना तो सभी चाहते हैं लेकिन साथ हमेशा पाप का देते हैं। पाप के उदय का फल कोई नहीं चाहता, लेकिन पापकर्म करना स्वीकार करते हैं।
धर्मसभा में आचार्यश्री ने उपस्थित को अभिषेक पूजन का प्रशिक्षण दिया। पार्श्व युवा मंच द्वारा शांतिधारा की गई। मंगलाचरण कोटा से आये श्रावकों द्वारा किया गया। श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष भंवरलाल मुण्डलिया और वर्षा योग समिति के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने बताया कि सभा में बाहर से भारी संख्या में श्रावकों का आना प्रारम्भ हो चुका है। उन्होंने बताय कि रविवार की सभा में अहमदाबाद, सागवाड़ा, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, सलूम्बर, इन्दौर, सन्तरामपुर आदि शहरों और कस्बों से सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
उन्होंने बताया कि दोपहर में उदयपुर के समस्त समाज के बालक-बालिकाओं की जैन धर्म विषय पर लिखित परीक्षा पूज्य आचार्यश्री के सानिध्य में आयोजित की गई। शाम को सुकुमाल बाल मण्डल द्वारा नियम का फल नाटिका का प्रस्तुतिकरण हुआ।