उदयपुर। आज के समय में व्यक्ति सिर्फ स्वयं के हितों के बारे में ज्यादा सोचता है, दूसरों के बारे में नहीं। स्वयं की गलती होने पर भी दोषारोपण दूसरों पर ही करने की कोशिश में रहता है और अपने पाप कर्मों का बंध करता है। ऐसे संकीर्ण विचारों के कारण ही व्यक्ति अपनी उन्नति नहीं कर पाता है।
उक्त उद्गार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित चातुर्मास के अवसर पर प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये। आचार्यश्री ने कहा कि विकासशील से विकसित बनने के लिए देश के हर नागरिक को अपनी सोच बदनली होगी। अना ही नहीं दश के विकास को सर्वोपरी मानना पड़ेगा। संकीर्ण दायरे से हट कर अपन सोच को उदार बनाना पड़ेगा। आचार्यश्री ने कहा कि 1 अरब की जन संख्या वाला देश चाहे तो विश्व का सिरमौर बन सकता है। लेकिन हम एक दूसरे के दोष देखने, विवाद, लड़ाई-झगड़े में ही अपना समय बर्बाद कर देते हैं। हम भूतकाल में जीते हैं, इसीलिए संकीर्णता हावी रहती है। याद रखने वाली बात यह है कि हमें वर्तमान को सुधारना है और भविष्य को निखारना है।
शुक्रवार को धर्मसभा में दीप प्रज्वलन गुवाहाटी से आये सौभाग्यमलजी ने किया। चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने बताया कि रोजाना सुबह आचार्यश्री के प्रवचन होत है, दोपहर में स्वाध्याय और शाम को जैन पाठशाला का आयोजन होता है।
कैशलोचन 29 को
आचार्य सुकुमालनन्दी का केशलोच समारोह रविवार 29 जुलाई को प्रात: 7.30 बजे से होगा। केशों को उखाडऩा दिगम्बर साधु की वीर चर्या है। हाथों से अपने सिर, दाढ़ी, मूछोंके बाल उखाडऩा वैराग्य, सहनशीलता व वीतरागता का प्रतीक है। इस अवसर पर झमकलाल भेजवात सराड़ा वालों की तरफ से स्वामी वात्सल्य भोज भी रखा जाएगा। केशलोच के बाद आचार्यश्रीद्वारा मंगल प्रवचन भी होगा। इस कार्यक्रम में उदयपुर सकिहत सभी गांव- शहरों के हजारों श्रद्धालुओं के आने की सम्भावना है।