udaipur. सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के लोक प्रशासन विभाग द्वारा प्रशासनिक सुधार विषयक आयोजित क्षेत्रीय संगोष्ठी में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की 15 वीं रिपोर्ट में राज्य एवं जिला प्रशासन की दी गई अनुशंसाओं तथा भारत सरकार द्वारा किए गए निर्णयों के क्रियान्वयन में आनेवाली व्यवहारिक समस्याओं के संबंध में चर्चा हुई।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि मदस विश्वविद्यालय, अजमेर के पूर्व प्रोफेसर आर. पी. जोशी ने कहा कि वैश्वीकरण के कारण भारतीय शासन व्यवस्था तथा नौकरशाही के सम्मुख गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई है तथा आमजन भी लोक-प्रशासन से अधिक संवेदनशील व्यवहार की अपेक्षा करने लगा है। ऐसे में सूचना का अधिकार, लोकसेवा गारंटी तथा जनसुनवाई का अधिकार इत्यादि सुशासन के प्रयास ही लोकसेवकों की उपादेयता सिद्ध कर सकेंगे।
अध्यक्षता कर रही प्रो. फरीदा शाह ने कहा कि राजनीतिक सुधारों के बिना प्रशासनिक सुधारों को लागू करना किंचित कठिन है। आर्थिक मंदी के दौर में प्रशासनिक सुधार अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। समापन सत्र के मुख्य अतिथि तथा विश्वविद्यालय सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता तथा राजनीति विज्ञानी प्रो. अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने संभागीय आयुक्त कार्यालय समाप्त करने, विश्वविद्यालय शिक्षकों की भर्ती लोक सेवा आयोग द्वारा करने जैसे अव्यावहारिक सुझाव दिए हैं, जिन पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। विभागाध्यक्ष प्रो. सी. आर. सुथार ने सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा सहायक प्रोफेसर गिरिराज सिंह चौहान ने धन्यवाद ज्ञापित किया।