छू लिया दर्शकों का मन
उदयपुर। आज एक पीढ़ी अपने करियर और जीवन की भागदौड़ में व्यस्त है वहीं अपने जीवन की संध्या की ओर अग्रसर कई ऐसे लोग जो नितान्त एकाकी जीवन बिता रहे हैं। जो परिस्थितिवश ऐसे मोड़ पर हैं, जहां किसी अपने का साथ नहीं है।
जो अपने थे, वो अब नहीं हैं। या हैं, तो वे आना नहीं चाहते या व्यस्तता के चलते बहुत दूर हैं। अकेलेपन की इसी पीड़ा को बखूबी उजागर किया नाटक ‘ओल्ड वर्ल्डा’ ने।
विद्या भवन ऑडिटोरियम में शनिवार शाम ‘अलेक्सेई आर्बुजोव’ द्वारा लिखित एवं ‘भूपेश पण्ड्या’ द्वारा निर्देशित नाटक ‘ओल्ड वर्ल्डस’ का मंचन किया गया। नाटक दर्शकों में जीवन के प्रति एक नया नजरिया, एक नई सोच छोड़ जाता है। नाटक बुढ़ापे की दहलीज पर जा रहे, एकाकी जीवन बिता रहे लोगों के हालात पर केन्द्रित है।
अतीत की घटनाएं, दुर्घटनाएं अलग-अलग तरह से उनके जीवन पर असर छोड़ती है। अतीत की ये जकड़ ऐसी घटनाओं को भी आसानी से घटने नहीं देती, जिनसे बची-खुची जिन्दगी को संवारा भी जा सकें। परिस्थितियाँ ऐसी बनती है, की दोनों लड़ते है, अपने—अपने अतीत की जकड़ से (और एक—दूसरे) से भी! और यही जद्दोजहद अतीत के छालों पर मरहम का काम करती है, तो भविष्य का चेहरा उम्मीदों से संवरने लगता है। यही जद्दोजहद बाकी जिन्दगी के सफर में मिलकर साथ चलने की अहमियत का अहसास कराती है, और उसे हकीकत में बदलने का साहस भी जुटाती है। दोनों मिलते है। अपने भिन्न-भिन्न जीवन दर्शनों के साथ लेकिन अंत में दोनों एक-दूसरे का जीवन दर्शन बड़े ही स्वाभाविक ढंग से स्वीकार कर लेते है। सिकुड़ते सामाजिक दायरे और जीवन में घुसपैठ कर रहै, एकाकीपन की इस त्रासदी से गुजरते की पीड़ा और इससे उबरने की यात्रा को नाटक में बखूबी दिखाया गया है।
निर्देशक भूपेश पण्ड्या ने दृश्य संकल्पना व रचित पात्रों को बखूबी उभारा। कलाकारों में अपने साथ घटी त्रासदियों के बावजूद जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाली अधेड़ महिला के किरदार को रेखा सिसोदिया ने उत्कृष्टि तरीके से दर्शाया डॉक्टर के रूप में अनिल दाधीच का अभिनय अत्यन्त स्वाभाविक रहा।
प्रस्तुति पार्श्वि में संगीत का प्रयोग उत्तम रहा। दीक्षान्त राज सोनवाल ने रशियन धुनों का इस्तेमाल प्रभावी ढंग से किया। प्रकाश परिकल्पना हेमन्त मेनारिया व महेश आमेटा की थी।
मंच व्यवस्था विजयलाल गुर्जर की थी एवं मंच परिकल्पना संदीप सेन और अमित श्रीमाली ने की। वेशभूषा कविता खत्री और खुशबू खत्री की थी।
रूपसज्जा रेखा शर्मा और नृत्य निर्देशन मोना शर्मा ने किया। हेमन्त, अनिल, निलाब और प्रशान्त ने मंच पाश्र्व और प्रोपर्टी में सहयोग दिया। नाटक का हिन्दी अनुवाद डॉ. बी. सफाडिय़ा और भूपेश पण्ड्या ने किया। नाटक के सह. निर्देशक शिवराज सोनवाल थे।
आरम्भ मे स्वागत भाषण देते हुए ट्रस्ट के सचिव नन्द किशोर शर्मा ने बुढ़ापे की दहलीज पर जा रहे, एकाकी जीवन बिता रहे लोगों के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बुढ़ापे की दिक्कतों का वर्णन किया। शर्मा ने कहा कि नाटक सवाद का सशक्त माध्यम हैं। ट्रस्ट सचिव ने बताया की नाटक ‘ओल्ड वल्र्ड’ का मंचन 5 अगस्त को भी किया जायेगा, जिसमें दर्शकों का प्रवेश नि:शुल्क रहेगा।