उदयपुर। प्रत्येक व्यक्ति अपने को सुधारने के बजाय दूसरों का सुधारना चाहता है। इंसान सौ फीसदी दूसरों को ही देखता है, लेकिन सवयं की आत्मा की ओर दृष्टि नहीं डालता है। कम से कम 75 प्रतिशत ध्यान स्वयं की ओर लगाना चाहिये और जरूरत पड़े तो 25 प्रतिशत ध्यान दूसरों की और लगाना चाहिये।
कहने का तात्पर्य है कि पहले स्वयं को सुधारने में पूरी ऊर्जा लगाओ और फिर जरूरत पड़े तो दूसरों को सुधारने का प्रयास करो। यही अनुशासन का मूल मंत्र है। खुद सुधरोगे तो जग अपने आप सुधर जाएगा। उक्त उद्गार सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि भारत का हर नागरिक 15 अगस्त को देश की आजादी का जश्न मना रहा होगा तब कुछ सैनिक भारत की सीमा पर जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रहे होंगे। हमें उन साधुओं यानि सैनिकों को भी बार-बार नमन करना चाहिये।
शनिवार को पाद प्रक्षालन व अघ्र्य समर्पण का सौभाग्य भंवरलाल मुण्डलिया, जयन्तिलाल डागरिया सपरिवार ने प्राप्त किया। धर्मसभा में दीप प्रज्वलन जोधपुर से आये मेहमानों द्वारा किया गया।