udaipur. आत्मा एक और कषाय चार है लेकिन जब आत्मा अपने में होती है तो कषाय भी उसका कछ नहीं बिगाड़ कतेहै। कषायों पर विजय पाना अंसभव तो नहीं लेकिन मुश्किल अवश्य है। जो श्रावक कषय की प्रकृति, उसके स्वभाव,उसके मायाजाल, को पहचान कर उस पर प्रहार करता है वहीं वास्तव में उसका विजेता होता है। कषायों को जीतना मानवता का दिव्य अनुष्ठान है।
उक्त उद्गार आज समता शिरोमणी आध्यात्म योगी ज्ञान रत्नाकर आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने आदिनाथा भव में आयोजित धर्मसभा में बोलते हुए व्यक्त किए। उन्होनें कहा कि जिसने कषाय को जीता वह पृथ्वी पर ईश्वर के समान होता है। कषाय से तात्पर्य बुरे विचार क्रोध,मान,माया, व लोभ जैसे बुरे विचारों से है।
इससे पूर्व सभा का मंगलाचरण इन्दौर से आये अतिथियों ने किया। चावण्ड के डालचंद जैन ने दीप प्रज्जवलन किया जबकि पाद प्रक्षालन व अद्र्य समर्पण का लाभ झाड़ोल के सेठ हुकमीचंद पंचोरी ने प्राप्त किया।
ट्रस्ट के अध्यक्ष भंवरलाल मुंडलिया ने बताया कि आगामी 29 अगस्त को आयोजित समता दिवस को ऐतिहसिक बनाने के लिए चातुर्मास समिति की बैठक आयोजित की गई जिसमें कार्यक्रम की रूपरेखा पर विचार-विमर्श किया गया।