उदयपुर। संसार दुखों का सागर है। प्रत्येक व्यक्ति इस दुखों के सागर से पार पाना चाहता है, लेकिन संसार सागर में रहते हुए वह पूर्णतया सुखी नहीं हो पा रहा है। जब तक इन दुखों का कारण नहीं पता चलेगा , तब तक प्रत्येक व्यक्ति इन दुखों से छुटकारा नहीं पा सकता है। दुखों की जड़ उनका कारण राग-द्वेष ही है।
जब तक आत्मा इन राग द्वेषों युक्त है जब तक वह पूर्ण सुखी हो नहीं सकती। उक्त उद्गार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित चातुमार्सिक प्रवचन में शनिवार को उपस्थित श्रावकों के समक्ष व्यक्त किये। उन्होनें कहा कि यही जीवन का सत्य है और यही जिन्दगी की वास्तविकता है। जो वास्तविकता से परिचित है वही बुद्धिमान हैं। सार रहित इस संसार में जो तत्व ज्ञानी हैं, वही इस संसार से पार पा सकता है। यदि हमें इस दुख रूपी सागर में भी सुख रूपी ज्ञानामृत का पान करना है तो दुखों की जड़ राग-द्वेष को खत्म करना होगा। राग-द्वेष ही संसार में दुखों का कारण है। राग द्वेष से ही कर्म बन्धता है।
समिति के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने बताया कि रविवार को आचार्यश्री के विशेष प्रवचन होंगे और खासकर युवाओं को पूजन प्रशिक्षा दिया जाएगा।