udaipur. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा है भारत देश। लोकतंत्र केवल एहसास पर ही नहीं चलता है, हमारा अहसास, हमारी देश भक्ति के विचार मात्र साल में दो- चार दिन तक ही सीमित नहीं रहनी चाहियेक अपितु सम्पूर्ण जीवन भर देशहित के लिए कार्य करना हमारी नीयति होनी चाहिये।
ये विचार आचार्य सुकुमालनंदी महाराज ने स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में सेक्टर 11 स्थित आलोक स्कूल के कांफ्रेंस हॉल में आयोजित विशेष प्रवचन में सैकड़ों श्रावकों, छात्रों और महिला-पुरूषों के सामने व्यक्त किये।
आचार्य ने कहा कि बतौर भारतीय नागरिक देश के प्रति, तंत्र के प्रति, हवा और धरती के प्रति अपना फर्ज ईमानदारी के साथ निभाना चाहिये। उन्होंने कहा कि हम आजादी की 65वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, लेकिन अभी तक हम विचारों के गुलाम हैं। इस बार हमें अपनी वैचारिक दासतां को दूर करने का प्रयास करना चाहिये और इस वैचारिक गुलामी को दूर भगाने का प्रयत्न करना चाहिये। हम सुधरेंगे तो देश सुधरेगा। तंत्र को तो लोग चलाते हैं और वह वैसा ही चलेगा जैसा वह चलाएंगे। आजादी का जश्न दर असल खुद को सुधारने या स्वयं में बदलाव पैदा करने के उद्देश्य से मनाना चाहिये।
आचार्यश्री ने कहा कि भले ही हमने भौगोलिक स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है, लेकिन अभी भी 125 करोड़ की आबादी वाले देश भारत में एक तिहाई जनता गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। आजादी का मतलब बराबरी से है, जब तक स्त्री- पुरूष, गरीब- अमीर, ऊंच-नीचको बराबरी की कोटि में नहीं गिना जाएगा तब तक देश विकास की कल्पना निरर्थक ही साबित होगी।
इस अवसर पर आचार्यश्री ने बाधाओं को जीत ले वही जवानी है, चट्टानों से टकरा सके, वही पानी है। गुलामी में रहना किसी को पसन्द नहीं, मन से न करे गुलामी वही वीर भारतीय की निशानी है। देशभक्ति कविता भी सुनाई। आचार्यश्री ने अपने प्रात:कालीन प्रवचन में कहा कि कृतघ्नी कभी मत बनो, देश और धर्म के प्रति अपना दायित्व और फर्ज अदा करो।