udaipur. एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन राजस्थान अध्याय एवं प्रसार शिक्षा निदेशालय महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वटविद्यालय के तत्वावधान में शुक्रवार को डॉ. वाई. एल. नैने, अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन, सिकन्दराबाद का टिकाऊ खेती : वैदिक साहित्य से सबक सीखें विषयक व्याख्यान प्रसार शिक्षा निदेशालय सभागार में हुआ।
मुख्य वक्ता डॉ. वाई.एल. नैने ने बताया कि भारतीय ऋषियों जैमिनी पाराशर एवं कश्यमप ने यह रास्ता दिखलाया जिससे बेहतर कृषि और वृक्ष, पर्यावरण व पशुओं को सम्मान देते हुए इनमें संतुलन रखा जा सके।
उन्होंने कहा कि धनवान एवं सम्पन्न जन जिनके पास सोने चांदी के गहने व अच्छी पोशाकें हैं, उन्हें किसानों से ऐसी याचना करनी चाहिये जैसे कि भक्त भगवान से करते हैं। यह समय हमारी कृषि विरासत के पुनरावलोकन करने का है। देश के प्राचीन व मध्ययुगीन काल के साहित्य मे पर्यावरण संसाधनों और आध्यात्मिकता का समावेश है। इन साहित्यों के गंभीरतापूर्वक अध्ययन तथा वर्णित ज्ञान को पुन: अंगीकार करने की आवश्यीकता है जिससे समाज का पुर्ननिर्माण कर कृषकों का मनोबल बढ़ाया जा सके।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राजस्थान कृषि विश्व विद्यालय के प्रथम कुलपति प्रो. के. एन. नाग ने व्याख्यान की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुये कहा कि आधुनिक कृषि एवं अधिक उत्पादन प्राप्त करने की होड़ में हम अपने प्राचीन कृषि ज्ञान को भुला रहे हैं। उन्होंने जैविक खेती एवं पारम्परिक कृषि ज्ञान को अपनाने की आव_यकता पर बल दिया।
इस समारोह के प्रारम्भ में डॉ. एम.एम. सिमलोट, अध्यक्ष, एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डे_ान राजस्थान अध्याय ने राजस्थान अध्याय की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। इस समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. पी. के. गुप्ता, कुल सचिव, कृषि विश्वएविद्यालय ने बताया कि आज हम अपनी प्राचीन खेती को भूलते जा रहे हैं जिसकी वजह से अनेक समस्यायें उत्पन्न हो गई हैं। इनका निवारण वैदिक खेती या कार्बनिक खेती को अपनाकर किया जा सकता है।
डॉ. आई. जे. माथुर, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, एमपीयूएटी, उदयपुर एवं सचिव, एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन राजस्थान अध्याय ने सभी अतिथिगणों का पुष्प।मालाओं से स्वागत किया और कहा कि वर्तमान में आधुनिक कृषि का वैदिक कृषि के साथ सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यककता है।
एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन राजस्थान अध्याय द्वारा सम्पादित प्राचीन कृषि विज्ञान बुलेटिन के प्रथम अंक का भी विमोचन भी किया गया। इस बुलेटिन के सम्पादन में डॉ. एम.एम. सिमलोट, डॉ. आई. जे. माथुर, डॉ. सुनील खण्डेलवाल, डॉ. गणेश राजामणि, डॉ. सुनील इन्टोदिया एवं डॉ. मीना सनाढय की मुख्य भूमिका रही। इस बुलेटिन में प्राचीन कृषि ज्ञान का सारगर्भित संकलन किया गया है। संचालन मनीषा पाण्डे ने किया और धन्यवाद की रस्म डॉ. गणेश राजामणि ने अदा की।