धूमधाम से मनाया समता दिवस
udaipur. मुस्कुराती सुबह रात में ढली हाती है, जीवन की पीठ पर मौत लिखी होती है। या फिर दया धरम का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छोडिय़े, जब तक घट में प्राण। ऐसे दिल को छू लेने वाले आचार्य सुकुमालनन्दी के आदर्श, मार्मिक और मीठी वाणी से 34 वें समता दिवस के मौके पर प्रवचन का आगाज हुआ तो टाऊन हॉल में सैकड़ों भक्तों में खामोशी छा गई, और देखते ही देखते कई महिला- पुरूष भक्तों की आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी।
आचार्यश्री ने कहा- हर व्यक्ति जानता है कि सुबह हुई तो शाम भी होगी। सूरज उदय हुआ है तो ढलेगा भी, व्यक्ति इस दुनिया में आया है तो उसे जाना भी है। लेकिन महत्पपूर्ण यह नहीं है कि दुनिया में आये, जीये और चले गये महत्वपूर्ण यह है कि हम दुनिया में आये तो कितना परमार्थ किया, कितने दीन-दुखियों के काम आये, कितना धर्म और पुण्य किया।
आचार्यश्री ने कहा कि सभी को जीवन के महत्व का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हम कितने साल जीये, महत्वपूर्ण यह भी नहीं कि हमारी जिन्दगी कितनी बड़ी है, कितने समय तक हम धरती पर रह रहे हैं जबकि महत्वपूर्ण यह है कि हम जिस धरती पर रह रहे हैं उस धरती मां के लिए हमने क्या किया है। जी तो धरती पर सभी रहे हैं लेकिन औरों के लिए जीना, दीन- दुखियों की मदद करके जीना यह महत्वपूर्ण हैं। अगर हम सिर्फ अपने ही स्वार्थ की खातिर जी रहे हैं तो यह भी कोई जीना है। आचार्यश्री ने कहा- इस धरती पर असंख्य वनस्पति हैं, असंख्य जीव हैं लेकिन इंसान और अन्य जीवों में काफी अन्तर है। क्योंकि अन्य जीव- जानवर सिर्फ स्वयं के लिए जीते हैं जबकि इंसान दूसरों के लिए भी जी सकता है। उसमें बुद्धि है, विवेक है और समझ है जो कि जानवरों में नही होती है,फिर इंसान दूसरों की भलाई करने में क्यों पीछे हटता है, क्योंकि दूसरों के सुखों से जलता है।
ऐसा सोचने वाले मूर्ख हैं: आचार्यश्री ने समता का पाठ पढ़ाते हुए उन सभी लोगों को आगाह किया जो ऐसा सोचते हैं कि हम बड़े हो गये हैं, हमारी उम्र बढ़ रही है, हम हर साल बड़े हो रहे हैं। ऐसा सोचने वाले मूर्ख होते हैं क्योंकि कोई भी उम्र से बड़ा नहीं होता है। बड़ा तो वह होता है जो परमार्थ के कार्य करे, दीन- दुखियों की मदद करे। महान कार्य करने वाला ही बड़ा और महान होता है।
हर जीव की रक्षा करो: आचार्यश्री ने कहा कि हम कहते हैं गाय हमारी माता है। उसके लिएण् हम गौशाला खोलते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें सिर्फ गाय को ही बचाना है, हमें हर जीव को बचाना है। आचार्यश्री ने चुटकी ली कि गौशाला में अगर गधा आ जाए तो उसे लकड़ी से पीट कर भगाना नहीं है, क्योंकि वह भी जीव है। ऐसा करके हम पाप के भागी बन रहे हैं। गाय को तो बचाना है ही, उसके साथ दया, प्रेम और करूणा का भाव तो रखना है ही लेकिन साथ ही हमें अन्य जीवों के प्रति भी ऐसा ही व्यवहार रखना है, जितना कि हम गौ-माता के प्रति रखते हैं।
सोचो- हमें जाना कहां है: आचार्यश्री ने कहा कि जी तो सभी रहे हैं, सभी को यह पता है कि एक दिन दुहिनया से जाना है लेकिन जाना कहां है, यह किसी को पता नहीं। मरने के बाद हमारी क्या गति होगी। क्या कभी किसी ने सोचा कि जो हाथ भगवान ने हमें दिये हैं उन हाथों से हमने कितने दीन- दुखियों को उठाया, उनकी सेवा की, जो पांव हमें मिले हैं वह कितनों के सुख के लिए हम दौड़े, जो आंखें हमें मिली है उन आंखों से कितने दीन-दुखियों को देख कर उनसे आंसू निकले। इसलिए हमें हमारी दृष्टि बदलनी पड़ेगी, संकीर्ण विचारों से ऊपर उठकर दूसरों की भलाई के बारे में सोचना होगा।
इससे पूर्व आचार्यश्री के 34वें समत दिवस के उपलक्ष में टाऊन हॉल प्रांगण में बने भव्य पाण्डाल में भक्तों की इतनी भीड़ उमड़ी कि पाण्डाल भी छोटा नजर आने लगा। मंच पर भक्ति गीतों और मधुर संगीत की धुनों से प्रांगण पूरा गूंज उठा और लोग भक्ति गीतों पर नृत्य करते झूम उठे।
मुख्य कार्यक्रमों में 34वें समता दिवस के उपलक्ष में दीप प्रज्वलन के साथ ही शांतिधरा अभिषेक सम्पन्न हुआ। 34 परिवारों ने आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन किया। 34 शास्त्र आचार्यश्री को भेंट किये गये और 34 अघ्र्य समर्पण किये गये। आनिाथ महिला मण्डल द्वारा मंगलाचरण के साथ भक्ति नृत्य की जोरदार प्रस्तुति दी। आचार्यश्री पर पुष्प वर्षा की गई।