udaipur. अमानवीय और अनैतिक कार्य करने से ही सजा मिलती है। हिंसा, झूठ, चोरी आदि पाप कार्यों का फल अवश्य मिलता है। जो गलत करके सुधरता है, उसे इंसान कहते हैं जो बिलकुल भी गलती नहीं करें उसे भगवान कहते हैं। ये विचार आचार्य सुकुमालनन्दी ने रविवार को सेन्ट्रल जेल परिसर में कैदियों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
आचार्य ने कहा कि जेल में इंसान सुधरने के लिए जाता है, बिगडऩे के लिए नहीं। जेल के माध्यम से दोषी व्यक्ति की आत्मा पवित्र बन जाती है। जेल की सजा चाहे हंसकर भोगनी पड़े या रो-रोकर। समता भाव से भोगी गई सजा ही कर्म निर्जरा व मोक्ष का माध्यम बनती है। उन्होंने कहा कि जेल सिर्फ कैदियों के लिए सजा काटने का स्थान ही नहीं बल्कि कैदी को सुधरने का मौका देने का बड़ा माध्यम भी है।
आचार्य ने कहा कि इंसान को नर से नारायण, कंकर से शंकर बनाने की प्रक्रिया ही जेलखाना है। अपने पापों का पश्चाताप करने का स्थान है जेल। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति परमात्मा और ईश्वरतुल्य बन सकता है। गलती करना मानवीय स्वभाव है। जो गलती करके उससे सबक ले और सुधर जाए वह इंसान कहलाता है। यहां जेल में जितने भी कैदी हैं वो सभी सच्चे इंसान बन कर जेल से निकले। जितने भी दिन जेल में रहें समतापूर्वक रहें। आचार्यश्री के प्रवचनों को सभी कैदियों ने ध्यानपूर्वक सुनकर उन्हें ग्रहण किया। इस दौरान उन्हें मिठाइयां वितरित की गई। इसके अलावा सभी कर्मचारियों व प्रश्नों का उत्तर देने वालों को फलों की टोकरियां वितरित की गई।
चातुर्मास समिति के प्रमोद चौधरी और भंवर मुण्डलिया ने बताया कि इससे पूर्व दोपहर दो बजे सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन से सैंकड़ों श्रद्धालुओं की शोभा यात्रा के साथ आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज 3 बजे सेन्ट्रल जेल प्रवचन देने पहुंचे। शोभा यात्रा में बैण्डबाजों पर भक्ति गीत गूंज रहे थे। मार्ग में जगह- जगह आचार्यश्री पर पुष्पवर्षा की गई।