udaipur. त्याग ही आग की राग को बुझाता है, त्याग ही कर्मों के जाल को सुलझाता हैँ, त्याग ही रागी को वीतरागी बनाता है। जिस प्रकार बादल जल का त्याग देने पर स्वच्छ हो जाता है। कपड़ा मल का त्याग करके स्वच्छ हो जाता है, उसी प्रकार आत्मा से कर्मरूपी मैल का त्याग होने पर आत्मा स्वच्छ हो जाती है।
इस संसार में ऐसे तो सभी दुखी हैं लेकिन जिसने त्याग धर्म को अपनाया वह सदा सुखी रहता है। आत्मा उत्थान की ओर जाती है। उक्त उद्गार आचार्य सुकुमालनन्दी ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित प्रात:कालीन प्रवचन में व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि दान और त्याग में अन्तर है। दान पुण्य है, त्याग धर्म है, दान में प्रवृत्ति है, त्याग में निवृत्ति है, दान में व्यवहार है, त्याग निश्चय है, दान परोपकार हेतु किया जाता है, त्याग स्व- कल्याण के लिए किया जाता है। गरीबों की सेवा करना, दान देना, जरूरतमंद लोगों की सहायता करना भी त्याग धर्म कहलाता है।
इससे पूर्व चतुर्मास समिति के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने सभी तपस्वियों की पारणा व शोभा यात्रा व्यवस्था की जानकारी दी। कुल 158 तपस्वियों द्वारा तप आराधना सानन्द चल रही है। सभी ने पूज्य गुरूदेव को उपवास श्रीफल चढ़ाया।