udaipur. धर्म करने से तिर्थंच जानवर भी अपने पर्याय से मुक्त होकर देवपन को प्राप्त होते हैं और अधर्म करने से देव भी जानवर बन जाते हैं। धर्म की महिमा अपरम्पार है। धर्म मे जब तक श्रद्धा व आस्था है तभी तक जीवन में शान्ति है और जब श्रद्धा व आस्था ही नहीं हो तो धर्म करना भी व्यर्थ माना जाता है।
उक्त विचार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये। आचार्यश्री ने कहा कि मोक्ष मार्ग हो या समाज की गतिविधियां धर्म क्षेत्र हो या कर्म क्षेत्र सभी क्षेत्रों में विश्वास व आस्था का ही महत्व हुआ था। जिस प्रकार बिना बीज के वृक्ष टिक नहीं सकता उसी प्रकार बिना श्रद्धा व विश्वास के धर्म भी नहीं ठहरसकता है। धर्म से पतित भी पावन बन जाता है और अधर्म सेदेव भी पतित बन जाता है। सम्यकदर्शन से पापी भी परमात्मा बन जाता है।
इससे पूर्व आचार्यश्री के दीक्षा स्थली मालपुरा से आये यात्रियों ने आचार्यश्री का पाद प्रक्षालीन किया व दीप धर्मसभा के दौरान दीप प्रज्वलन भी किया। चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने बताया कि 21 अक्टूबर को से. 14 में आचार्यश्री के सानिध्य में भारत वर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के एक मात्र कार्यालय का उद्घाटन राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्मल कुमार सेठी द्वारा किया जाएगा।