मीडिया के व्यवसायीकरण पर सेमिनार
udaipur. ’जनतंत्र के लिए परिस्थितियां बदल रही है। कॉर्पोरेट पूंजी का प्रभाव जनतंत्र पर तेजी से बढा़ है। जनतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष का स्वरूप बदल रहा है तथा इसके लिए नये हथियारों की तलाश जरूरी है।’
ये विचार जाने माने मीडिया विशेषज्ञ सुरेश पंडित अलवर ने महावीर समता संदेश द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन ’मीडिया का व्यवसायीकरण एवं प्रतिबद्धता के प्रश्नि’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। उन्होनें कहा कि जिस तरह पुराने हथियारों से वर्तमान के युद्ध नहीं लडे़ जा सकते उसी तरह विचारधारा के स्तर पर भी नये संघर्ष के लिए नये हथियार तलाशने जरूरी है। उन्होने कहा कि मीडिया का लक्ष्य जहां आम जनमानस की चिन्ताओं को अभिव्यक्त करना होना चाहिए था वह व्यवसायिक कम्पनियों के हितों से ही अघिक संचालित होता है। जाने माने गीतकार हंसराज चौधरी ने कहा कि मीडिया की प्रतिबद्धता उसी वर्ग के साथ जुडी़ रहती है जो वर्ग उसका पोषण करता है। आवश्यिकता है कि समाज का वंचित वर्ग अपने लिए अपनी अभिव्यक्ति का माघ्यम स्वयं तैयार करें। यह वैकल्पिक मीडिया ही सही अर्थों उनके वर्गीय हितों की रक्षा कर सकेगा। भीलवाडा़ के सत्यनारायण व्यास ’’मधुप’’ ने गीत प्रस्तुत किया।
अध्यक्षता करते हुए गीतकार रेवती रमण शर्मा ने कहा कि कोर्पोरेट पूंजी से जुडे़ बडे़ अखबारों ने छोटे व मध्यम दर्जे के अखबारों का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। सत्र में महावीर समता संदेश के प्रधान संपादक हिम्मत सेठ ने पत्र की संघर्ष यात्रा का उल्लेख किया। वरिष्ठ कवि व चिन्तक प्रो. नन्द चतुर्वेदी ने कहा कि पत्रकारिता का जो प्रतिमान महावीर समता संदेश जैसे समाचार पत्र स्थापित कर रहे है वह ही समाज के लिए आशा है।
’फिल्म संस्कृति व लोकतंत्र’ विषय पर आयेाजित सत्र में मोहनलाल सुखाडिया विश्वाविद्यालय में दर्शन शास्त्र की सह आचार्य डां. सुधा चौधरी ने कहा कि संस्कृति के नाम पर प्रगतिशील व जनतांत्रिक मूल्यों को प्रतिस्थापित करने की चेष्टाश की जाती है। कभी भारतीय संस्कृति की आध्यात्मवादी प्रवृति के नाम पर तो कभी पाश्चाशत्य संस्कृति के भय को दिखाकर समाज में पारम्परिक मूल्यों को बढावा दिया जाता है। नाट्यकर्मी महेश नायक ने भारतीय सिनेमा के 100 वर्षों पर दृष्टिपात करते हुए कहा कि भारत में इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन आदि रंगमंच के आन्दोलन के लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि रंगमंच व सिनेमा वर्तमान समय में जनतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते है।