वैश्वीकरण, गरीबी और मानवाधिकार पर सेमीनार का समापन
Udaipur. साहित्यकार प्रो. नंद चतुर्वेदी ने कहा कि स्वतन्त्रता आदमी का मूल अधिकार है और इसकी आकांक्षा उसे सदियों से रही है। मानवाधिकारों की पहली लडा़ई साहित्य के माध्यम से ही लडी गई थी उन्होंने कवि चंडी दास का भी उदाहरण दिया। उन्होंने आज वैश्वीकरण के दौर में समृद्धि की पुनर्व्याख्या करने की बात पर जोर दिया और इसके खतरे भी गिनाए।
वे यहां राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के तत्वावधान में मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के सहयोग से सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में वैश्वीकरण, गरीबी ओर मानवाधिकार विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का समापन शुक्रवार को हुआ। दूसरे दिन दो तकनीकी सत्रों में विविध विषयों पर शोध पत्र पढ़े गए।
मुख्य अतिथि पटना विश्वविद्यालय के प्रो अरूण कमल ने कहा कि साहित्यकार और कलमकार भी अपने शब्दों की धार से मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिता जाहिर करते है। हम लेखक भी वही कर रहे है जो सरकार कर रही है हम किसी भी रूप में अलग नहीं है। मानवाधिकार आयोग के सहायक निदेशक डा एसके शुक्ला ने बताया कि आयोग इस सेमीनार में पढे गए सभी शोध पत्रों को पुस्तकाकार में प्रकाशित करेगा। उन्होंने बताया कि आयोग भारतीय भाषाओं को बढावा देने का काम भी कर रहा है जिसके तहत सम्बन्धित राज्य की भाषा में मानवाधिकार सम्बन्धी शब्दावली बनाई जा रही है। श्रीमती रचना ने पूरे कार्यक्रम का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया ।आयोग के अवर सचिव संजय कुमार ने शुरू में सभी अतिथियों का स्वागत किया जबकि राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो संजय लोढा ने धन्यवाद दिया।
दूसरे दिन के पहले सत्र की अध्यक्षता प्रो अरूण चतुर्वेदी ने की। इस सत्र में में डा एसके वर्मा- मुजफ्फरनगर ने वैश्वीकरण एवं मानवाधिकार- सहयात्रा के जरूरी उपक्रम, डा स्वाति तिवारी- भोपाल ने स्त्री अधिकारों की रक्षा ओर मीडिया का दायित्व व डा हिंमाशु पंड्या- उदयपुर ने सामासिक संस्कृति, साहित्य और मानवीय आयाम विषय पर पत्र पढे। दूसरे तकनीकी सत्र में प्रो प्रदीप त्रिखा- उदयपुर ने वैश्वीकरण के बढते चरण और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका, डा आलोक श्रीवास्तव- अजमेर ने वैश्वीकरण, बेरोजगारी भत्ता तथा काम का अधिकार विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए। अध्यक्षता प्रो नरेश भार्गव ने की जबकि संचालन अंजलि सकलानी ने किया।